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रिश्तों की धुलाई / लघुकथा

उसने आज अपने सभी नये पुराने रिश्तों को धोकर साफ़ करने के विचार से , काली संदूक से उन्हें बाहर निकाला ।
पानी में गलाकर ,साबुन से घिसकर , खूब धोया । कितने मैल, कितनी काई , छूटकर नाली में बही , लेकिन उनमें से मैल निकलना अभी तक जारी था ।
रिश्तों की काई धोते - धोते हठात् पानी खत्म होने का एहसास हुआ । जरा सा पानीे बचा था ।
लगे हाथ उसने दोस्ती को बिना साबुन ही खंगाल लिया ।
उसे यकीन था , रगड़ कर धोये हुए समस्त रिश्ते चमक गये होंगे ।
सुखाने के लिये तार पर फैलाते वक्त वह चकित हुआ । रिश्तों की कालिमा अभी भी पूर्ववत थी जबकि दोस्ती तार पर दप - दप चमक कर , मुस्कुरा रही थी ।


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:10am

आदरणीय सुशील जी , कथा  पर  आपका  विस्मृत  होना मेरे लेखकीय  कर्म को सार्थकता दे  गया . कैसे  आभार  व्यक्त  करू  शब्द  कम  पद  गए  है  . सादर  नमन  आपको  

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:08am

आदरणीया  अन्नपूर्णा जी  , बिलकुल  सही  कह  रही  है  आप  कि दोस्ती कभी फीकी नहीं पड़ती है समय धूल अवशय जम जाती है जिसे खंगाल कर निकाला जा सकता है लेकिन रिश्तों को कितना भी सहेजा जाए वे कुछ न कुछ समस्या लिए ही रहते है । आभार  आपको  ह्रदय  से  .

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:07am

जी  आदरणीय लक्ष्मण जी  ,सही  कहा  आपने  दोस्ती  पर  मेल  नहीं  चढ़ती है  क्योंकि वहाँ स्वार्थ  नहीं  होता  है  . आभार  आपको 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:06am

हा  हा  हा  हा  ,आदरणीय सुनील जी बहुत  खूब  प्रतिक्रया  है  ये  आपकी  कथा  पर  . बहुत  खूब  भाव  को  यहाँ  व्याख्यादित किया  है  आपने  . मैं  अभिभूत  हुई  . आभार  आपको 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:04am

आपकी  सटीक  प्रतिक्रया  मन  को  मोहित  कर  देती  है  आदरणीया राहिला  जी  . आभार  तहेदिल  आपको  कथा  को  पसंद  करने  हेतु  

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2016 at 8:11pm

रिश्तों की कालिमा अभी भी पूर्ववत थी जबकि दोस्ती तार पर दप - दप चमक कर , मुस्कुरा रही थी ।   .... वाह आदरणीया कान्ता रॉय जी विस्मृत हूँ कल्पना की उड़ान देखकर। रिश्तों की धुलाई   .... एक अलग ही विषय ,अलग प्रस्तुति का ढंग , विषय के गर्भ से निकली उक्त पंचलाइन गज़ब का अहसास दे रही है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by annapurna bajpai on February 25, 2016 at 1:00pm

बहुत खूब लिखा !! आपने आदरणीया कांता जी , सच ही है दोस्ती कभी फीकी नहीं पड़ती है समय धूल अवशय जम जाती है जिसे खंगाल कर निकाला जा सकता है लेकिन रिश्तों को कितना भी सहेजा जाए वे कुछ न कुछ समस्या लिए ही रहते है । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2016 at 11:32am

दोस्ती  पर  कभी  मैल नहीं चढ़ा करता .वह तो हमेसा ही उज्जवल होती है .

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 12:47pm
रिश्तों की कालिमा दोनों ओर से धुले तो शायद चमक जाये । एक तरफा कोशिश अक्सर नाकाम होती है । और रही दोस्ती की बात ,ये तो वो मृगकस्तूरी है जिसकी महक से किसी का भी जीवन सुगंधमय हो जाये । खरे सोने जैसी चीज की चमक कब कम होती है । शानदार लेखन, उम्दा प्रस्तुति आदरणीय कांता दी! बहुत बधाई । सादर

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