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आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी , आपने कथा के विषय की गंभीरता को समझा ये मुझे प्रोस्त्साहित कर गया . दिल से आभार व्यक्त करती हूँ
कथा का आपके मन तक पहुँच जाना मेरे लिए सुखद एहसास है आदरणीय समर कबीर जी . तहेदिल आभारी हूँ
आदरणीय सुशील सरना जी , आप जैसे साहित्य के मर्मज्ञ से कथा पर इतना वितार्पूर्ण प्रतिक्रया पाना मेरे लिए " पदक " के सामान हुआ है . ह्रदय से आभार आपको
कथा पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रया से मेरा उत्साह बढाने के लिए बहुत बहुत आभार आपको आदरणीय राहिला जी
लघु कथा का अच्छा विषय चुना है | सामयिक समस्या पर लघुकथा रचने के लिए बधाई
" अपना काम करवाना है तो इन सबका मतलब समझना होगा " उसके कंधे पर हाथ रख आधे झड़ते से पीले दाँत निपोड़ वह खिखिया उठा ।
उसने अपने पैरों में पहने जूते की तरफ़ देखा । घिसी हुई सोल से तलुवा झाँक रहा था ।
" काम तो किसी भी हाल में करवाना हैै , जल्दी बताईये " भविष्य में जूते के अधिक उघड़ने से , वह सहसा डर गया । भूख और पेट दोनों का आकार अब सुरसा के मुँह जैसा बढ़ता जा रहा था ।
आ. कान्ता रॉय जी अपने प्रस्तुत लघु कथा के माध्यम से समाज व्याप्त इस अवांछित कृत्य को दर्शा कर एक साहसिक मानसिकता का परिचय दिया है। ये भूख वास्तव में सुरसा के मुख की तरह बढ़कर समाज और देश को दीमक की तरह चाट रही है। इस श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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