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आदरणीय सुशील जी , कथा पर आपका विस्मृत होना मेरे लेखकीय कर्म को सार्थकता दे गया . कैसे आभार व्यक्त करू शब्द कम पद गए है . सादर नमन आपको
आदरणीया अन्नपूर्णा जी , बिलकुल सही कह रही है आप कि दोस्ती कभी फीकी नहीं पड़ती है समय धूल अवशय जम जाती है जिसे खंगाल कर निकाला जा सकता है लेकिन रिश्तों को कितना भी सहेजा जाए वे कुछ न कुछ समस्या लिए ही रहते है । आभार आपको ह्रदय से .
जी आदरणीय लक्ष्मण जी ,सही कहा आपने दोस्ती पर मेल नहीं चढ़ती है क्योंकि वहाँ स्वार्थ नहीं होता है . आभार आपको
हा हा हा हा ,आदरणीय सुनील जी बहुत खूब प्रतिक्रया है ये आपकी कथा पर . बहुत खूब भाव को यहाँ व्याख्यादित किया है आपने . मैं अभिभूत हुई . आभार आपको
आपकी सटीक प्रतिक्रया मन को मोहित कर देती है आदरणीया राहिला जी . आभार तहेदिल आपको कथा को पसंद करने हेतु
रिश्तों की कालिमा अभी भी पूर्ववत थी जबकि दोस्ती तार पर दप - दप चमक कर , मुस्कुरा रही थी । .... वाह आदरणीया कान्ता रॉय जी विस्मृत हूँ कल्पना की उड़ान देखकर। रिश्तों की धुलाई .... एक अलग ही विषय ,अलग प्रस्तुति का ढंग , विषय के गर्भ से निकली उक्त पंचलाइन गज़ब का अहसास दे रही है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बहुत खूब लिखा !! आपने आदरणीया कांता जी , सच ही है दोस्ती कभी फीकी नहीं पड़ती है समय धूल अवशय जम जाती है जिसे खंगाल कर निकाला जा सकता है लेकिन रिश्तों को कितना भी सहेजा जाए वे कुछ न कुछ समस्या लिए ही रहते है ।
दोस्ती पर कभी मैल नहीं चढ़ा करता .वह तो हमेसा ही उज्जवल होती है .
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