आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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// वो तो कहो कि, आज पड़ौस के रामु काका अपने बेटे की बारात में उसके पति और पुत्र दोनों को जबरदस्ती साथ ले गए , और सुखिया के भाग जाग गए।वह भी इस आनंद को पूरी तरह जीना चाहती थी, सो एक पल भी गवाएं बिना गर्म बिछौने में घुस गई // क्या महीन बिंदु पकड़ा है आपने वाह
//और सच्ची अब करुण आवाज़ें बंद हो गई थीं, और सुखिया ? वह रोज़ वाली चटाई पर इस तरह बेसुध सो रही थी, जैसे बच्चे कुतिया ने नहीं , उसने जने हों ।// निशब्द कर रही है ये अंतिम पंक्ति ढेरों बधाई स्वीकारें आप आदरणीया शशि जी
म
हार्दिक बधाई आदरणीय शशि बंसल जी !बेहतरीन प्रस्तुति!
उफ्फ ! आदरणीया शशि जी , कितना गहरा लिख गयी है आप यहाँ ! कथ्य के सम्प्रेषण में सटीकता और तीव्रता का अद्भुत समागम देखने को मिला है आज यहाँ आपकी कथा में . लघुकथा पढने का मन को संतुष्टि मिली . ह्रदय से बधाई आपको .
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