आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आदरणीय चंद्रेश जी एक टिप्पणी पहले की थी. नजर नहीं आ रही है. इस लिए इसे दुसरी मान ले. आप की लघुकथा ने पुराने तीन नियम को नए रूप में बखूबी ढाल कर कमाल की लघुकथा रची है. बढ़िया इस उम्दा लघुकथा के लिए.
आदरणीय ओमप्रकाश जी सर, जी, टिप्पणी मुझे भी दिखाई नहीं दी, लेकिन बहुत-बहुत आभार आपका आपने इतना ध्यान रखा और पुनः इस प्रयास पर आकर अपने शब्दों से मुझे प्रोत्साहन दिया| पुनः धन्यवाद सर|
हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी !आपकी कल्पनाशीलता के हम पहले ही क़ायल हैं!आपकी सोच ,आपका नज़रिया और लेखन शैली पाठक को "वाह" कहने को मज़बूर कर देती है! बेहतरीन प्रस्तुति!
लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी आशीर्वादस्वरुप टिप्पणी ने मेरा मनोबल उच्च किया है, इस हेतु सादर आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु सादर आभार आदरणीया नीता कसार जी
AADRNIY BHAI JI AAJ KA YATHRATH KATHA KE MADHYAM SE BAHUT SUNDAR TARIKE SE UKERA
SABDS LAGHU KATHA
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु सादर आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार गौड़ जी भाई जी|
सादर आभार आदरणीया नीता सैनी जी, लघुकथा के इस प्रयास पर अपनी उपस्थिति और टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया|
"ये केवल तभी बुरा नहीं देखेंगे, बुरा नहीं कहेंगे और बुरा नहीं सुनेगे जब इनकी जेबें भरी रहेंगी| इंसान हैं बंदर नहीं..."------- गांधी जी के बन्दर बुराइयों से बचने को दिखाने का प्रतीक स्वरुप इस्तेमाल चकित करता हुआ सा बन पडा है . कथ्य का पूरा फोकस इन्हीं तीनो बन्दर पर जबरदस्त उभार होने का कारण बन गया . आपकी कथा में चिंतन , साधना का एक स्तर निहित होता है . आज आपकी इस कथा से मुझे भी एक कथानक बहुत अच्छा मिला है . आपकी रचनाएँ आज भी हमको प्रस्तुति का एक नया तरीका सीखा कर गयी है . ह्रदय से बहुत -बहुत बधाई आपको इस कथा के सृजन के लिए आदरणीय चंद्रेश जी
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