आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.सौरभ जी रचना पर देर से पहूँचने के लिये क्षमा.नेताओ का तमाशा और सत्ता के लिये पूरी थैली खोलने का तमाशा और नेताजी की शान मे जयकारा लगाते तमाशबीन खूब कही कथा आपने.आपकी प्रस्तुतिकरण की शैली मुझ अभ्यासी के लिये बडा महत्व का काम करती है.बधाई आपको इस रचना के लिये
सादर आभार आदरणीया नयना (आरती) जी. आपकी सदाशयता से अभिभूत हूँ. हम समवेत सीखें.
सादर
सत्ता के गलियारें में सांप गुजरने के बाद लकीर पीटने की आदत रही है. एक बड़े सम-सामाजिक समस्या को एक बच्चे माध्यम से आपने अच्छा कथ्य रूप दिया. बच्चे मन में चल रहे भावों को आपने शब्द सज्जा दिया . बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय .
आदरणीया रीताजी, आपने मेरी प्रस्तुति के पात्र चयन को लेकर जो कुछ कहा है वह आपकी संवेदनशीलता और आपकी सूक्ष्मदृष्टि का परिचायक है.
सादर आभार
हम अभ्यासियों के लिए एक अध्याय ! तमाशबीन को कितने रूपों में दिखाया गया है इस कथा में , नेता जी के रूप में ,मुख्य पात्र के रूप में , पात्र के दोस्त के रूप में , तमाम अनचीन्हे सिरों के रूप में तस्वीर में मुस्कुराते हुए बापू जी के रूप में और कहीं-न-कही माँ के रूप में भी "विषय" को अनकहे ही पाठक के दिमाग में पुर्णतः घुसा ("प्रवेश" शब्द इसलिए नहीं लिख रहा कि इम्प्रेशन न कम हो जाए) देना . लघुकथा को उसके शीर्ष पर पहुंचा देता है | इस कथा के माध्यम से सीखा हूँ आदरणीय | सादर
आदरणीय सौरभ पांडे जी ... निर्जीव तस्वीर रूपी प्रतीक मे कल्पना का सुंदर पूट देकर आपने उसमे जान डाल दी। ऐसा लगा गांधीजी भी प्रत्यक्षरूप मे मौजूद है और वर्तमान मे कुछ नहीं कर पाने से दुखी और तमाशबीन है। विषय को न्याय देती ईस सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करे।
अदरणीय मदनलाल जी, आपसे मिला तथ्यगत अनुमोदन आश्वस्त कर रहा है कि लघुकथा की गति सदिश रही है.
सादर धन्यवाद
आदरणीय सुधीर द्विवेदी जी, आपने प्रस्तुति को सांगोपांग स्वीकार किया, मैं आभारी हूँ.
सादर् आभार
आदरणीय सौरभ भैया, गांधी जी को तमाशबीन बनाने पर कथा अपने चरम पर आ जाती है. गांधी जी की तस्वीर का महत्व दोस्त के बाबुजी भी समझ रहे थे. और अब उसक दोस्त भी समझ रहा है. गांधी जी के हिलते फोटो ने भारतीय समाज के आधारहीन होने का एक प्रमाण दे दिया है. सुन्दर कथा.
सादर.
तथ्यगत टिप्पणी से लघुकथा के आयाम संतृप्त हुए हैं. हार्दिक धन्यवाद अनुज ..
नेता जब ऑफिस में किसी महा मानव कि तस्वीर लगाता है तो लगता है नेत्जी उनके अनुयायी है या उन्हें अपना आदर्श व्यक्ति मानते है | उस व्यक्तित्व की प्रतिकृति मौन तमाशबीन साक्ष है | बहुत सही भावों की शीर्षक पर साथक लघु कथा हुई है | "मूर्ति हमारी प्रार्थना सुनती है ऐसा समजकर है मंदिर में दर्शन करते है | कहानी कथ्य और कहने का अंदाज बहुत पसंद आया | हार्दिक बधाई आदरणीय
:-))
प्रस्तुति पर उपस्थिति बनाने केलिए हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण लडीवाला जी.
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