आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बापरे ह्रदय विदारक. मन दहला दिया आपकी कथा के षड्यंत्र ने.
आदरणीया शशि जी, दहेज़ लोभियों के षड्यंत्र वाला कथानक लेकर बढ़िया लघुकथा कही है. वैसे इस पंक्ति -//आज उन्होंने खुद अपने हाथों से जरी की सुन्दर नाइलोन साड़ी पहनने को दी है ।// को पढ़ते ही लघुकथा खुल जाती है और अंत समझ आ जाता है. एक बात और हीरा भी कोयले का ही अपररूप है. बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई. सादर
सारे कायदे कानून बनने के बाद भी दहेज़ का दानव हमें आज भी जकड़े है ,ये बहुत दुखद है , सशक्त कथा के लिए बधाई स्वीकार करेंआदरणीया शशि जी,
समाज में जो गन्दा है, घिनौना है वह तो है ही, ऐसी घटनाएँ विश्वास तक को हिला कर रख देती हैं. वैसे पंच-लाइन और सार्थक होनी चाहिए थी,जाने ऐसा मुझे क्यों लग रहा है. कोयला ही तो था, जल गया.. किसी सूरत में परिस्थितियों और वातावरण में फिट नहीं हो पा रहा है. अलबत्ता, नाटकीयता के लिए स्पेस अवश्य दे रहा है. लेकिन नाटकीयता, जो कि कथा-साहित्य का अभिन्न भाग है, तार्किकता की कसौटियों के सापेक्ष हो, तो ही सुगढ़ लगता है.
यह अवश्य है कि प्रस्तुति अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही है.
शुभेच्छाएँ
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