आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ अनिता जी , अपना मारता है तो छाँव में भी डालता है , मगर आपके कथानायक को इतना सुकून भी नहीं मिला। फिर भी सलाम उसके हौसले को जो गड्ढे से निकल कर इमारत बनाएगा। उत्तम सोच। इत्तू सी मगर सुंदर कथा।
कथा पर ्अपनी सुंदर टिप्पणी से हौंसला देने का बार्दिक आभार आ नील जी
आदरणीया अनीता जी, आपके कहने के ढंग से यह आम-सी प्रतीत होती कथ्य पठनीय हो गयी है. हृदयतल से शुभकामनाएँ.
आपकी कथा बहुत ही बढ़िया हुई है आदरणीया अनिता जी , लेकिन एक पंक्ति पढ़ते हुए खटक सी गयी है वो है //अब तक सुदीप भी दर्द समेट हिम्मत जुटाने की कोशिश में लगे थे । चेहरे पर कुछ समय पहले तक इंद्रधनुष से बिखरे रंग मटमैले हो चले थे । // -----अब यहाँ आप सुदीप को बाहर से आकर ही कटे पेड़ सा बिस्तर पर गिराने को संदर्भित किया है तो " कुछ देर पहले तक इन्द्रधनुष से बिखरे रंग " ---यहाँ कुछ देर तो गलत शब्द प्रयुक्त हुआ है सुदीप के लिए क्योकि वह तो कुछ देर पहले घर में ही नहीं था तो उसका रंग किसने देखा की वो कैसा था ? सादर
अच्छी लघुकथा हुई है, जीवन में सतर्कता आवश्यक है, बधाई इस प्रस्तुति पर आदरणीया अनीता जैन जी.
"करतूत "
'बचपन की दोस्ती की पगड़ी उछाल कर ,मेरी पीठ में छुरा घोंपते तेरे हाथ ना काँपे, आत्मा मर गई तेरी,एेसा क्यों किया,आज तुम्हारा बच्चा जेल मे है पर नाम तो कमल का बदनाम हो रहा है।बताओ तुमने एेसा क्यों किया।'
श्यामू की लाल लाल आंखे,और तीखे तेवर देख रामू की सिट्टी,पट्टी गुम हो गई।
'बैठ मैं बताता हूँ, रामू यार मुझे माफ करना।
5 साल पहले मैने कमल का नियुक्तिपत्र डाकिये से ले कर साँठगाँठ कर नयन को नियुक्त करा दिया।'
'किन्तु कमल के दस्तावेज, परिचय पत्र कहाँ से लाये।'
'याद कर जब तूने सत्यापन के लिये दिये थे उसी समय रख लिये , नयन का आधार कार्ड कमल के नाम बना लिया।'
'कमल के दस्तावेज तो हमारे पास है।'
'वह तो रंगीन फोटोकापी दी थी तुझे। मेरा बेटा तो कपूत निकला न पढ़ा, लिखा, न यह नौकरी संभाल सका।
मुझे माफ करो भाई, गुनहगार हूँ, तुम्हारा।'
"मैं यारी ही नही ज़मीर बेच कर खा गया ।"
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( मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय नीता कसार दी बहुत सुन्दर षडयंत्र .
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