आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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"ईमानदारी ख़त्म नहीं हुई है। वह आज भी 'प्रासंगिक' है; कहीं पर मौजूद है और कहीं किसी न किसी स्वार्थ के कारण किसी साज़िश की शिकार है।"----वाह ! वाह ! मेरी नज़र में आज की गोष्ठी की सबसे शानदार लघुकथा है ये आपकी आदरणीय शहजाद जी . गजब की बुनावट ,गज़ब की संप्रेषणीयता और गज़ब का पंच जिसमे कथ्य एक दम से उभरकर आया है .
लम्बी कथानक का चुनाव करके सधे हुए तरीके से आपने यहाँ लघुकथा का ऐसा सृजन किया है कि कहीं किसी भी पंक्ति में कथा का बिखराव देखने को नहीं मिला जबकि ऐसी कथाओं में कथ्य के बिखराव होने का डर बना रहता है . आपने रिस्क तो लिया लेकिन वर्त्तमान जीवन की वास्तविकता में सार्थकता को साकार कर रचनात्मक दृष्टिकोण से शिल्प और कथ्य को नवीनता दी है . ह्रदय से अभिनन्दन आपको इस सार्थक सृजन के लिए .
आदरणीय उस्मानी जी, आपकी कल्पनाशीलता ने एक अलग ही कथानक बुना है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
प्रिय उस्मानी जी , आपका लगातार लिखते जाना बहुतों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता है कि खुदा का यह बन्दा न थकता है न रुकता है। प्रस्तुत रचना की थीम ऐसी है कि मुझे नहीं लगता शेख साहब के अलावा कोई सोचेगा। कथा मेरे हिसाब से कुछ लम्बी हो गई पर यह भी नहीं सूझता कांटछांट कहाँ से हो। बधाई शहजाद भाई।
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