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2122 2122 2122 212
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खो गया है अक्स असली ढूँढता है आईना।
होंठ पर मुस्कान नकली देखता है आईना।।

.

इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।
किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।।
.
हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
.

बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
.

मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता के दुख को भाँपता है आईना।।
.

वात अनुकूलित भवन में नीति निर्माताओं से।
स्वेद टपकाता श्रमिक बन बोलता है आईना।।
.

जिस्म से जिसके ये सनई ब्रांड ख़ुश्बू फैलती।
नींव वो ही सभ्यता की खोजता है आईना।।
.

जिस जगह तुम रौब अपना झाड़ कर आये अभी।
आम है पर प्राण है सच जानता है आईना।।
.

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:13pm
आदरणीय अग्रज (गिरिराज भंडारी) को सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:13pm
आदरणीय कल्पना भट्ट मैम सादर आभार और अभिवादन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 2, 2016 at 8:12pm
आदरणीय कान्ता रॉय मैम सादर आभार और हार्दिक अभिवादन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 6:27pm

आदरणीय पंकज भाई , बहुत खूब ! ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद स्वीकार करें ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 3:33pm

हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
.

बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
.

मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता के दुख को भाँपता है आईना।।

बहुत खूब  आदरणीय पंकज जी |

Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 11:02am
इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।
किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।......आईने को बिम्बित करके बेहद खूबसूरत गजल कही है आपने आदरणीय पंकज जी ।बहुत बहुत बधाई आपको ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 1, 2016 at 8:33pm
आदरणीय समर सर सादर प्रणाम
Comment by Samar kabeer on June 1, 2016 at 12:34pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।

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