आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वाकई आज तो ये परिस्थिति भी कई जगह देखने को मिली है . अब अपराध का क्षेत्र पर सिर्फ पुरुषों का ही अधिपत्य नहीं रह गया है .यहाँ भी अब आज की युवतियां टक्कर देती हुई नज़र आ रही है . वे कॉर्पोरेट से लेकर जंगल के बीहड़ों पर राज करते हुए अब पुरुषों के अपराध प्रवृत्ति के एकाधिकार का निर्मूलन पर उतर आई है .दबाब जब हद से गुजर जाता है तो परिस्थिति विस्फोटक बन जाता है . समाज तो अब भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर नारी में अबला ,सीता को तलाश रही है जबकि जबकि यथार्थ यही है की आक्रोश की सीमा को लांघती हुई हर औरत में फूलन ज़िंदा हो उठी है . आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी की लघुकथा में पति की मृत्यु पर विजय अट्टहास लगाती हुई आक्रोशित नारी फूलन ही तो है !
आपने तो एक अलग कथ्य को संदर्भित किया था इस क्षण -विशेष में ,लेकिन अनायास ही अनदेखा -सा बहुत कुछ रोपित किया है इस लघुकथा में आपने आदरणीया राहिला जी . बहुत आल्हादित हुई आपकी इस लघुकथा को पढ़कर . ह्रदय से बधाई स्वीकार कीजिएगा .
आज वैसे भी मंच पर बहुत सशक्त रचनाएँ शामिल हुयी हैं।जिन्हें पढ़ कर लगा कि इस बार भी कोई सशक्त रचना प्रस्तुत नहीं कर सकी।लेकिन आपकी इतने विस्तार से टिप्पणी पाकर थोडा हौसला सा बंध गया।इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीया कांता दीदी!सादर नमन
बहुत बढ़िया राहिला जी। हालातों से अनजान , बिना पूरा सच जाने भीड़ कैसे उग्र हो जाती है , का आपने सुन्दर वर्णन किया। बधाई
आपने रचना के मर्म को खूब जाना आदरणीया नीरज दीदी!बहुत शुक्रिया आपका।सादर नमन
बहुत अलग कथानक है आपका राहिला जी, आपको विशेष बधाई इस लिए भी कि स्त्री होकर आप इस भाव को उकेर पाई. सच में स्थितियां ऐसी भी हो जाती हैं बहुत बार कि निर्दोष होते हुए भी व्यक्ति सिर्फ इस लिए अपराधी सिद्ध हो जाता है क्योंकि वह पुरुष है. बधाई इस बढ़िया कथा के लिए.
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी!आपकी स्नेहिल टिप्पणी ने तो मेरा हौसला ही बढ़ा दिया।खूब, खूब आभार।सादर
जनता पूर्व अनुभव , क्यूंकि आये दिन लड़कियों के छेड़ छाड़ की घटनाओं की खबर आती रहती है, के कारण अधिकतर सिक्के के एक ही पहलू को देखने की आदि हो जाती है यहाँ भी यही हुआ लडकी का हाथ पकडे देख मदद को चिल्लाती हुई लडकी की सहायता बेकसूर लड़के पर भारी पड़ गई ..जमाना तेजी से बदल रहा है तो मानव को अपनी सोच की धार और तेज करनी पड़ेगी |
विषय को सार्थक करती बेहतरीन प्रस्तुति | दिल से बधाईयाँ प्रिय राहिला जी |
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी!आपने रचना की जिस तरह से समीक्षा की,कि उसका सार आपकी टिप्पणी में समाहित हो गया।इसके लिए बहुत आभार।सादर नमन
बहुत, बहुत शुक्रियाआदरणीय सुनील जी!रचना की समीक्षा के लिये ह्रदय से आभार।सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी! बहुत सुंदर रचना! एक नये तरीके से परिभाषित किया है आपने आक्रोश!
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