आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ...सादर
आदरनीय प्रतिभा पांडे जी बहुत सी सुंदर ढंग से लघुकथा का निर्माण किया है. मन की परते खुलती गई.बधाई आप को इस लघुकथा के लिए.
हार्दिक आभार आपका कथा के अनुमोदन व् उत्साहवर्धन के लिए आदरणीय ओमप्रकाश जी ...सादर
आपकी लेखनी की प्रखरता यहाँ देखते ही बनती है आदरणीया प्रतिभा जी . दो युवा चरित्र का चित्रण आपने किया है जो अलग -अलग पृष्ठभूमि से संदर्भित है .एक धन का पर्याय है ,उसका धनवान पिता पेट्रोल का कुआं खरीद सकता है उसके पेट्रोल खर्च के लिए , तो दूसरे के लिए वही धन स्वप्न , जिसकी तंगी से उसकी पढ़ाई अर्थात कोचिंग छूट सकती है .आर्थिक तंगी के कारण ही वह विवश हुआ है दूकान पर काम करने को . आप चुपके से आरक्षण जैसी विसंगति को भी कथा में बोती हुई चिन्हित कर गयी है .
इन्हीं सामाजिक असंतुलन के कारण लोगों में असंतुष्टि , कुंठाएं , बढ़ रही है . समाज धीरे -धीरे असंतुलन की ओर बढ़ रहा है .टोपी को जिस प्रकार आपने बिम्बित किया है वो सराहनीय है . आपकी कथा आत्मविश्लेषण ,आत्मचिंतन को प्रेरित करती है . इकहरी भाव को पकड़ते हुए इतना बड़ा विस्तार को समाहित करना इन चंद पंक्तियों की प्रस्तुति में ,मन को विस्मृत कर गया है . इस लघुकथा की बुनावट बेहद खुबसूरत है .बहुत-बहुत बधाई आपको इस सार्थकम लघुकथा के लिए .
कथा का पर समय देकर इतना गहन विश्लेषण .एक एक बारीक धागे की पड़ताल ,किसी भी प्रयासी के लिए ये बहुत उत्साह बढ़ाने वाली बात है , स्नेहिल उत्साहवर्धन के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया कांता जी
वाह्ह्ह आक्रोश का क्या जबरदस्त चित्र खींचा है लघु कथा में .दिल से बधाई लीजिये| सामने वाले के शब्द या हरकतें जब इंसान की सहनशक्ति को क्रोस कर जाएँ तो ऐसा ज्वालामुखी फूटना लाज़मी है प्रिय प्रतिभा जी बहुत खूब |
आपको रचना पसंद आई ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आपका तहे दिल से आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी
वाह, बहुत खूब, विषय को सार्थक करती कथा। तीन शब्दों में सारा आक्रोश उगल दिया, " ले पी ले"
बहुत दिनों बाद आपको इस पटल पर देख कर अच्छा लगा ,रचना के अनुमोदन व् उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया नीरज जी
वाह दीदी आक्रोश का फूटना गज़ब का प्रभाव दे गया ..बधाई इस कथा के लिए.
हार्दिक आभार सीमा जी
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