For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

दोहा एक ऐसा छंद है जो शब्दों की मात्राओं के अनुसार निर्धारित होता है. इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं. पहले चरण को विषम चरण तथा दूसरे चरण को सम चरण कहा जाता है. विषम चरण की कुल मात्रा 13 होती है तथा सम चरण की कुल मात्रा 11 होती है. अर्थात दोहा का एक पद 13-11 की यति पर होता है. यति का अर्थ है विश्राम.

यानि भले पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप एक विराम बन जाता है.

 

दोहा छंद मात्रा के हिसाब से 13-11 की यति पर निर्भर न कर शब्द-संयोजन हेतु विशिष्ट विन्यास पर भी निर्भर करता है. बल्कि दोहा छंद ही क्यों हर मात्रिक छंद के लिए विशेष शाब्दिक विन्यास का प्रावधान होता है.

 

यह अवश्य है कि दोहा का प्रारम्भ यानि कि विषम चरण का प्रारम्भ ऐसे शब्द से नहीं होता जो या तो जगण (लघु गुरु लघु या ।ऽ। या 121) हो या उसका विन्यास जगणात्मक हो

अलबत्ता, देवसूचक संज्ञाएँ जिनका उक्त दोहे के माध्यम में बखान हो, इस नियम से परे हुआ करती हैं. जैसे, गणेश या महेश आदि शब्द.

 

दोहे कई प्रकार के होते हैं. कुल 23 मुख्य दोहों को सूचीबद्ध किया गया है. लेकिन हम उन सभी पर अभी बातें न कर दोहा-छंद की मूल अवधारणा पर ही ध्यान केन्द्रित रखेंगे. इस पर यथोचित अभ्यास हो जाने के बाद ही दोहे के अन्यान्य प्रारूपों पर अभ्यास करना उचित होगा. जोकि, अभ्यासियों के लिये व्यक्तिगत तौर पर हुआ अभ्यास ही होगा. 

 

दोहे के मूलभूत नियमों को सूचीबद्ध किया जा रहा है.

 

1. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण विषम शब्दों से यानि त्रिकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 के अनुसार होगा  और चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) होगा.

 

2. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण सम शब्दों से यानि द्विकल या चौकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 4, 4, 3, 2 के अनुसार होगा और चरणांत पुनः रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) ही होगा.

 

देखा जाय तो नियम-1 में पाँच कलों के विन्यास में चौथा कल त्रिकल है. या नियम-2 के चार कलों के विन्यास का तीसरा कल त्रिकल है. उसका रूप अवश्य-अवश्य ऐसा होना चाहिये कि उच्चारण के अनुसार मात्रिकता गुरु लघु या ऽ। या 21 ही बने.

यानि, ध्यातव्य है, कि कमल जैसे शब्द का प्रवाह लघु गुरु या ।ऽ या 1 2 होगा. तो इस त्रिकल के स्थान पर ऐसा कोई शब्द त्याज्य ही होना चाहिये. अन्यथा, चरणांत रगण या नगण होता हुआ भी जैसा कि ऊपर लिखा गया है, उच्चारण के अनुसार गेयता का निर्वहन नहीं कर पायेगा. क्योंकि उसतरह के त्रिकल के अंतिम दोनों लघु आपस में मिलकर उच्चारण के अनुसार गुरु वर्ण का आभास देते हैं. और विषम चरणांत में दो गुरुओं का आभास होता है.

 

3. दोहे के सम चरण का संयोजन 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 के अनुसार होता है. मात्रिक रूप से दोहों के सम चरण का अंत यानि चरणांत गुरु लघु या ऽ। या 2 1 से अवश्य होता है.

 

कुछ प्रसिद्ध दोहे -

 

कबिरा खड़ा बजार में, लिये लुकाठी हाथ

जो घर जारै आपनो, चलै हमारे साथ

 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर

पंछी को छाया नहीं फल लागै अति दूर

 

साईं इतना दीजिये, जामै कुटुम समाय

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय

 

विद्या धन उद्यम बिना कहो जु पावै कौन

बिना डुलाये ना मिले, ज्यों पंखे का पौन

*****

ज्ञातव्य : आलेख उपलब्ध जानकारियों के आधार पर है.

 

Views: 56092

Replies to This Discussion

प्रश्न भले ही चलताऊ हो..मगर उत्तर तथ्यपरक और विश्लेषणात्मक होने की आवश्यकता है...मेरा प्रश्न जिज्ञाषा भरा था...और उसी के समाधान के लिए थोड़े चलताऊ शब्दों के साथ उत्तर प्राप्ति आशा की ...

अशोक भाई, आपकी सारी बातें मैं सुनने-समझने की कोशिश कर रहा हूँ. किन्तु, यह भी उत्सुकता है कि आप इस मंच को समझते क्या हैं ? आपकी गंभीर तथा लगातार उपस्थिति की अपेक्षा है. अन्यथा आप ऐसे ही चलताऊ वाक्यांशों में सिमट कर रह जायेंगे. 

 

//मेरा प्रश्न जिज्ञाषा भरा था...और उसी के समाधान के लिए थोड़े चलताऊ शब्दों के साथ उत्तर प्राप्ति आशा की //

आप नये सदस्य हैं, अतः, आपकी जिज्ञासा की गंभीरता को बिना परखे उत्तर प्रस्तुत किया गया है. आपके माध्यम से अन्य सदस्यों को भी लाभ हुआ. लेकिन इस तरह के लाभ का कोई अर्थ नहीं बनता.

आपकी टिप्पणी में ’विश्वास नहीं होता’ जैसा वाक्यांश इस मंच को ही संवेदनशील बना देने में सक्षम है. 

क्या आपने छान्दसिक रचनाओं पर अभ्यास किया है ? इसी मंच पर ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन होता है. आजकल दोहा छन्द पर अभ्यास-क्रम तथा कर्म चल रहा है.  आपसे अपेक्षा है कि आप इस आयोजन में अवश्य सहभागी बनें. 

शुभेच्छाएँ 

आदरणीय सौरभ सर ..कई ऐसे प्रश्न जो सहज मन में उठते है और हम पूछ बैठते है लेकिन आपके और वीनस जी के लेखों में कहीं न कहीं उन प्रश्नों के उत्तर समाहित होते ही हैं ..जरूरत होती है तो बाद बाद पढने की ..मेरे मन में पंथी के छाया नहीं ..पर मात्राओं का हिसाब लगाना नहीं आया ..आपके लेख को फिर फिर पढ़ा और उसका उत्तर सहज मिल गया ..स्कूल जीवन में तो इस बिषय पर इम्तेहान भी दिया था लेकिन तब वो सब समझ में नहीं आया जो आज आया है आपको कोटिशः धन्यबाद सादर प्रणाम के साथ

प्रस्तुत आलेख से आपको रंच मात्र भी लाभ हुआ है तो, आदरणीय आशुतोष भाई, यह मेरा सौभाग्य है. विश्वास है, आप जिस हिसाब से अन्य रचनाकर्म करते हैं, वैसे ही दोहा छन्द पर कोशिश करेंगे. छन्दोत्सव के आयोजन में हिस्सा लें, रचनकर्म करें. वस्तुतः सीखने की कसौटी यही है. 

शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपके आदेश अनुशार मैंने आलेख को कई बार ध्यान से पढ़ा उसके बाद काफी कच्छ स्समझ में आया और कुछ का अनुमान भी लगा लिया परन्तु अनुमान से सही रचना नहीं हो सकती हमें सटीक जानकारी चाहिए होती है |इस बात को ध्यान रखते हुए मन में कई प्रश्न उठे |इस बार मैं केवल दो ही प्रश्न पुछ्र रहा हूँताकि अच्छी तरह समझ सकू  .,बाकी प्रश्न बाद में पूछुंगा |

प्रश्न 1" भले पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप एक विराम बन जाता है."  रेखांकित वाक्यांश अर्थ क्या है ? क्या विराम चिन्ह न लगाने से मतलब है ?

 प्रश्न २ "दोहा छंद मात्रा के हिसाब से 13-11 की यति पर निर्भर न कर शब्द-संयोजन हेतु विशिष्ट विन्यास पर भी निर्भर करता है

    क्या शब्द संयोजान का मतलब --विषम चरण के लिए --

अ) त्रिकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 के अनुसार होगा  और चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) होगा.

 ब)  विषम चरण सम शब्दों से यानि द्विकल या चौकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 4, 4, 3, 2 के अनुसार होगा और चरणांत पुनः रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) ही होगा. ---इतना ही है या और कुछ अन्तर्निहित है जो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ जिससे प्रवाह आता है ?

कल -  दिन -दि 1 न 1 --द्विकल ; यात्रा - या २ त्रा २ --चार कल   ; चाहिए -चा २ हि 1 ए २ --पाँच कल ---क्या ये सही है ?

मेरी समझ के अनुसार मेरा सबसे बड़ा प्रश्न दो के अन्तिम भाग का प्रश्न (रेखांकित )| आगे आप जैसा समझे उचित मार्ग दर्शन करे |

सादर 

 

आदरणीय कालीपद प्रसाद जी, 

// प्रश्न 1" भले पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप
एक विराम बन जाता है." रेखांकित वाक्यांश अर्थ क्या है ? क्या विराम
चिन्ह न लगाने से मतलब है ? //

उत्तर - यह यति के लिए जहा गया है यदि आप, आदरणीय, पारिभाषिक शब्दों कोनहीं समझेंगे तो छोटे-छोटे कई प्रश्न परेशान करने लगेंगे.
यति छान्दसिक रचना के किसी पद (पंक्ति) के बीच वाचन के क्रम में शास्त्रीय ढंग से आये विरान को कहते हैं. जैसे दोहा में पद को पढ़ते समय शाब्दिक रूप से १३ मात्राओं के बाद स्वयं विराम आ जाता है.

// प्रश्न २ - "दोहा छंद मात्रा के हिसाब से 13-11 की यति पर निर्भर न कर
शब्द-संयोजन हेतु विशिष्ट विन्यास पर भी निर्भर करता है
क्या शब्द संयोजान का मतलब --विषम चरण के लिए --

अ) त्रिकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 के अनुसार
होगा और चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) होगा.

ब) विषम चरण सम शब्दों से यानि द्विकल या चौकल से प्रारम्भ हो तो
शब्दों का संयोजन 4, 4, 3, 2 के अनुसार होगा और चरणांत पुनः रगण (ऽ।ऽ)
या नगण (।।।) ही होगा. ---इतना ही है या और कुछ अन्तर्निहित है जो मैं
समझ नहीं पा रहा हूँ जिससे प्रवाह आता है ?

कल - दिन -दि 1 न 1 --द्विकल ; यात्रा - या २ त्रा २ --चार कल ;
चाहिए -चा २ हि 1 ए २ --पाँच कल ---क्या ये सही है ? //

उत्तर - शब्द-संयोजन कल की व्यवस्था को ही कहा जा रहा है.
3, 3, 2, 3, 2 का अर्थ है, त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल

आगे, आप अभ्यास करें. और एक बार में तीन या पाँच दोहे ही प्रस्तुत करें. अन्यथा बिना नियम को पूरी तरह से समझे अधिक दोहों को प्रस्तुत करना किसी के लिए उचित नहीं है. न आपके लिए न पाठक केलिए.

सर्वोपरि, प्रस्तुतीकरण में, चाहे रचना के या टिप्पणी के, संप्रेषणीयता इतनी अवश्य होनी चाहिए कि कथ्य स्पष्ट हो सके.

सादर

आदरणीय, सौरभ पाण्डेय जी ,

अभी गुर समझ में आने लगे हैं ,आशा है आगे आपके मार्ग दर्शन में वो गलतियाँ नहीं होगी | कृपा बनाए रखे |

सादर 

आदरणीय सौरव पाण्डेय जी , नमस्कार 

 तुलसी दासजी का एक दोहा पढ़ते समय कुछ बाते सामने आयी जिस पर आपका मार्ग दर्शन की आवश्यकता है जिससे गूढता को समझने में मदत मिल सके |

सम  सम  विषम  सम    सम ..........................................मात्राएँ 

श्री    गुरु   चरण  सरोज  सम , निज मन मधुर सुधारि 

२     ११ /    १११   १/२१ /    ११    ११   ११  १११   १२१ 

बरनउ रघुवर विमल जस , जो दायक फल चारि 

११११  / ११११ / १११ /   ११     २  २  ११  ११    २१ 

शंका ! प्रथम  चरण--- अभी जो कुछ ओ बी ओ में नियम पढ़ा है उसके अनुसार  शब्द  संयोजन  प्रथम चरण में बिलकुल ठीक है परन्तु 'सरोज' शब्द की मात्र १२१ है जो ज गण है , | क्या ऐसे शब्द जैसे -गरीब ,जरीब ,करीब ,अमीन  शब्द  प्रथम और तृतीय चरण में आ सकता है ?  

शंका २. तृतीय चरण ---- नियम-2 के चार कलों के विन्यास का तीसरा कल त्रिकल है. उसका रूप अवश्य-अवश्य ऐसा होना चाहिये कि उच्चारण के अनुसार मात्रिकता गुरु लघु या ऽ। या 21 ही बने.

यहाँ तीसरा कल १११ है २१ नहीं ,क्या यह कोई अपबाद  है? उच्चारण वि  मल (१२) हो रहा है |

आशा है आप मेरी समस्या को समझेंगे और उचित मार्ग दर्शन करेंगे | इसे अन्यथा न लें |

सादर  

एक दोहा समीक्षा के लिए जिसमें मैंने ग़ज़ल वाले नियमों से मात्रा गणना की है। क्या यह हिन्दी में मान्य हो सकता है।

दूर इन्हें तुम राखते, रखो उन्हें तुम पास।
समझा जिन्हें न आपना, वही तुम्हारे खाश।।

आपके कहे का अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ भाई जी. न ही दोहे की भाषा के प्रति स्पष्ट हूँ. अपने कहे का मतलब साफ़ बताइये तो आपकी समस्या से हम अवगत हो सकेंगे. 

सादर

आदरणीय सौरभ जी यहाँ 'इन्हें' का अर्थ जो नजदीक हैं यानि कि अपने हैं।
और 'उन्हें' का अर्थ जो दूर के हैं यानि की पराये हैं
दूसरी पंक्ति का अर्थ कि जिनको अपना नहीं समझा और सदा दूर रखा वही मुसीबत में तुम्हारे खाश साबित होते हैं।
मुख्य बात है कि इन्हें, उन्हें, जिन्हें में मैंने 3 मात्रा गिनी है और तुम्हारे में 5 मात्रा।

बढिया किया है आदरणीय. मात्रा के अनुसार यही तो सही है. लेकिन तुकान्तता और भाषा के प्रति तनिक और सचेत होना होगा.

’राखते’ का प्रयोग अपनी जगह, इन्हें और उन्हें के इंगित यानी इशारे भी बहुत खुलकर नहीं आये हैं. 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service