आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय राजेंदर गौर जी दलित कन्या के बलिदान के मर्म को जोड़ दीजिए . लघुकथा शानदार हो जाएगी.
रचना का विषय पूर्ण लघुकथा पढने के प्रति उत्सुकता पैदा कर रहा है आदरणीय राजेन्द्र गौड़ भाई जी, संकलन के समय प्रतीक्षा रहेगी| सादर,
जनाब राजेन्दर कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
जी भाई जी, इंतज़ार रहेगा|
मेहमानवाजी
"आपका हैरानी भी गैरवाजिब नहीं है जनाब, मगर मौजूदा दौर के खौफ ने सही लोगो की पहचान को भी शक के दायरे में रख दिया है।" खालिद ने उसकी हैरानी का जवाब देते हुए कहा।
खूबसूरत पहाड़ियों से घिरे उस छोटे से गांव में जहां की मेहमानवाजी एक मिसाल मानी जाती थी, आज वहां एक रात बिताने की गुजारिश के मद्देनजर कई घरों से मिलती बेरुखी से उसे काफी हैरान हुयी थी।
"तो क्या तुम्हे खौफ नहीं लगता अजनबी या मुझ जैसे फौजी ड्रेस पहने लोगों से।" उसने सवालिया नजरो से खालिद की ओर देखा।
"जनाब, खौफ भी एक हद तक ही डराता है आदमी को और फिर मेरे पास है ही क्या खो देने के लिए जो मुझे किसी से खौफ लगे।" खालिद धीरे से मुस्कराया। "ये खुदा का दिया एक आशियाना और वो बिन माँ की बच्ची, जिस के लिए मैं जी रहा हूँ।" बाहर की तरफ इशारा करते हुए उसने अपनी बात पूरी की।
खंडहर सी बनी उस झोपड़ीनुमा कॉटेज के बाहर लकडियो के ढेर पर खड़ी, उन दोनों से बेखबर वो मासूम बच्ची दूर पहाड़ियों की ओर एक टक नजर गड़ाये जाने क्या देख रही थी।
"शायद बच्ची अपने आप में खोयी हुई है।" उसने, बच्ची को पुकारने पर कोई जवाब न मिलता देख अपना विचार जाहिर किया।
"नहीं ! बच्ची सुनने और बोलने दोनों से लाचार है जनाब।"
खालिद का जवाब इतना तीखा था कि अगली बात कहने में उसे कुछ वक़्त लगा। "जन्म से ही या किसी हादसे में हुआ ये सब उसके साथ।"
"हाँ हादसा ही हुआ था। एक बदनसीब रात थी वो जब 'उसने' इसके पूरे परिवार को मार दिया..." खालिद की आवाज में दर्द झलकने लगा था। ".... उस रात मैं, सिर्फ इसे ही बचा सका लेकिन हादसे की दहशत ने इसे अपनी जद में ले ही लिया। बस तब से यही है मेरी सब कुछ, जिसके लिए मैंने अपनी उम्र का हर लम्हा लिख दिया है।"
"पर था कौन वो जालिम ?"
"मेरा ही एक दोस्त था।" अनायास ही खालिद की नजरों में उसके अहसास झलकने लगे। "जिसके साथ उस रात मैं भी इस घर का मेहमान बना था।"
( मौलिक व अप्रकाशित )
हर बार कि तरह इस बार भी आपने उम्दा प्रस्तुती दी है जिसके लिए बधाई प्रेषित कर रहा हूँ ..
जिन वादियों में तराने गूंजा करते थे उनमे अब खौफ़ गूँजता है किसकी गलती है? खुदा ने तो उसे जन्नत बनाया था इंसान ने नर्क बना दिया किसकी गलती है? वादियों के उस खौफ़ की वारदात का ताना बाना बुनकर बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है भेड़ियों के बीच सच्चे इंसान भी होते हैं |बहुत बहुत बधाई आद० वीरेंद्र वीर जी
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