For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूनापन

एक ख़ला है, ख़ामोशी है,
जिधर देखो उदासी है,
समय सिफ़र हो गया,
आंसू निडर हो गए,
घेरे हैं लोग,पर कोई साथ नहीं,
सर पर किसी का हाथ नहीं,
शाम खाली गिलास सा,
टेबल पर औंधे मुंह पड़ा है,
मन में चिंता दीमक की तरह,
मन को खाये जा रही  है,
दिल की गली ऐसी सूनी है,
मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,
शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,
पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,
कब तक और कहाँ तक
इस सूनेपन, इस अकेलेपन का
बोझ ढोते रहें 'अकेला'?
अब या तो तुम आ जाओ ज़िन्दगी में,
या फ़िर मौत आ मिले ज़िन्दग़ी से.......

मौलिक एवं अप्रकाशित

-आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'

Views: 653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 6, 2016 at 3:40pm

आदरणीया कांता रॉय जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!
मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए और नज़्म पढ़कर आनंद उठाने के लिए !!!
और इतने अच्छे कमेंट्स के लिए आभार !!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 6, 2016 at 3:34pm

आदरणीय समर कबीर जी दाद और मुबारकबाद के लिए कोटिशः धन्यवाद !!!
और आपके बहुमूल्य सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिए आपका आभार !!!
मैंने ग़लती तुरंत सुधार ली !!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 6, 2016 at 3:29pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.... तहेदिल से आपका शुक्रिया हौसला अफज़ाई के
लिए !!!!

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:54pm
दिल की गली ऐसी सूनी है,
मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,
शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,
पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,..... बेहद शानदार तरीके से अभिव्यंजित किया है आपने कविता को। मन मुग्ध हुआ है पढ़ते ही। बधाई आपको आदरणीय आशीष जी।
Comment by Samar kabeer on September 2, 2016 at 10:34pm
जनाब आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी नज़्म,अपने एहसासात को अल्फ़ाज़ की डोर में ख़ूबसूरती से पिरोया है आपने, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

//मन में चिंता दीमक की तरह,
मन को खाये जा रहा है//

'खाये जा रहा' को 'खाये जा रही' कर लीजिये क्यूँकि दीमक स्त्रीलिंग है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 5:08pm

आदरनीय आशीष भाई , व्यक्त निराशा हुई है , पर अभिव्यक्ति अच्छी है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 2, 2016 at 2:53pm

आ. अग्रज गोपाल जी बहुत बहुत धन्यवाद नज़्म पढ़ने के लिए।  जी आपकी बातों को ज़रूर अमल में लाऊँगा। सभी तरह के लिखता हूँ । ...धीरे-धीरे  हाज़िर करूँगा। आपकी सलाह  के लिए कोटिशः  धन्यवाद !!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2016 at 8:58pm

और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा --- कहाँ जान देनेपर तुले है साहिब  कुछ आशाये  सजाएं कुछ  विश्वास जगाये . आमीन .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service