आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी
आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी, बहुत ही बेहतरीन लघुकथा लिखी है आपने। आपके शीर्षक का चयन मुझे विशेष तौर पर पसन्द आया। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
आपको कथा पसंद आई ,हार्दिक आभार आपका
हार्दिक आभार आदरणीया जानकी जी
आ. प्रतिभा जी आपने तो" धमाका मैडम" के साथ एकदम धमाकेदार कथा रची है. बधाई स्वीकार करें।
देखभाल
"ये कैसा जूस है?"
बेड पर शिफ्ट हुए मरीज की गुस्से भरी आवाज़ से पूरा वार्ड गूंज गया। मरीजों और उनके परिजन सबका ध्यान अपने आप ही उस और चला गया। अचानक सबको अपनी और देखते पाकर देखभाल के लिए मौजूद उसकी पत्नी जैसे संकोच से गड़ गई थी।धीमे स्वर में पूछा: "क्यों जी, स्वाद ठीक नहीं है, या ठंडा ज्यादा है?"
"ठंडा तो नहीं है, पर कडुवा लग रहा है, जैसे ज़हर चख लिया हो!" स्वर अब थोड़ा धीमा था।
"नहीं तो, स्वाद तो ठीक है, पता नहीं आपको क्यों नहीं अच्छा लगा।" पत्नी ने समहते हुए कहा।
"ठीक लग रहा है तो तुम ही पी लो!" उसने झुंझलाकर मुंह घुमा लिया।
एक ही घूंट में पूरा जूस खत्म कर पत्नीे गिलास कूड़ेदान में फेंक, झटपट पति के लिए एक प्लेट में खिचड़ी परोसने लगी।
"लीजिए, थोड़ी सी खा लीजिए, आपका पेट खाली है।"
"लाओ!"
बेमन से चार चम्मच खाकर पत्नी को पकड़ाते हुए फिर उसने झिड़का, "बनाई किसने थी, ये?"
"मैं खुद बनाकर लाई हूँ, और चख कर भी।" अब पत्नी के स्वर में भी थोड़ा आत्मविश्वास झलक रहा था।
"ख़ाक चखी थी! नमक तक तो है नहीं!"
"अरे! ऐसा कैसे?"
"खा कर देख लो।"
पत्नी फिर जूंठी खिचड़ी निपटाने लगी थी।
"गुस्सा अक्सर लोगों को दिख जाया करता है।" पत्नी को खिचड़ी खाते हुए देख मन ही मन बुदबुदाते हुए पति के चेहरे पर संतोष पसर आया था।
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