आदरणीय साथिओ,
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आदरनीय तस्दीक जी शुक्रिया आप का .
आ० ओम प्रकाश जी , कथानक बिखरा हुआ और कदाचित अस्पष्ट भी है . जागरूक पाठक आपकी भावना समझ तो जाएगा पर कथा में शिल्प का अपना महत्व है. सादर आपसे बेहतर की उम्मीद है.
आदरणीय गोपाल नारायण जी श्रीवास्तव जी प्रणाम. आप का कहना सही है, मुझे भी लघुकथा बेकार लगी. कुछ संशोधन किया है. बताए - अब बात बनी या नहीं,
लघुकथा- माँ
मन और आत्मा में अंतर्द्वंद्व चल रहा था.
मन ने हल्का होने के लिए आत्मा से कहा, “ मुझे पेन मिला था. माँ से कहा. वह कुछ नहीं बोली. मै ने पेन अपने पास रख लिया. मगर जब रास्ते में माँ के साथ जा रहा था, तब मुझे कीमती आभूषण व रूपए से भरा पर्स मिला था. उसे देख कर माँ बड़ी खुश हुई, ‘ ऊपर वाला जब भी देता है छपरफाड़ कर देता है.’ माँ ने यह कहते हुए उस अमानत को अपने पास रखा लिया था.”
“ यह तो गलत बात थी. क्या, भगवान इस तरह छप्परफाड़ कर धन देता है ?”
“ मुझे क्या पता. मै उस वक्त छोटासा बच्चा था. बस चीज़े उठाना सीख गया. और बड़ा हुआ तो छोटेछोटे अपराध करने लगा. मगर, मैं ने उस लड़की की हत्या नहीं की हैं.”
“ गले से चैन किस ने खीची थी ? उसी चैन से उस लड़की का गला कटा था और वह मर गई, ” आत्मा ने जवाब दिया.
“ मगर एक छोटीसी गलती के लिए हत्या, छेडछाड जैसे आरोप और जेल की सजा ? यह तो सरासर गलत व नाइंसाफी है. यदि मै पैसेवाला होता तो जेल से छुट गया होता ?” मन ने कहा तो आत्मा ने जवाब दिया, “ तुम ने गलती तो की है. सजा तो मिलेगी ही. चाहे शारीरिक हो या मानसिक ?” तभी अँधेरी कालकोठारी में गन्दगी में पनपने वाले मच्छर ने उस के एक हाथ पर काट खाया. दूसरा हाथ तब तक उस मच्छर को मौत की सजा दे चूका था, “ गलती की सजा देना तो कुदरत का भी कानून है.”
आत्मा ने कहा तो मन पश्चाताप की आग में जलते हुए बोला, “ सजा केवल मुझे ही मिलेगी ?”
“ नहीं. सभी को."
तभी अंधेरे को चीरती हुई प्रहरी की आवाज़ आई. “राजन ! तुम्हारी माँ मिलने आई है.” जिसे सुन कर मन चीत्कार उठा, “ गलत आदत सिखाने वाली मेरी माँ नहीं हो सकती है ?” और वह कालकोठरी की अँधेरी राह को चुपचाप निहारने लगा.
तभी आत्मा ने कहा, “ माँ ! माँ होती है. अन्यथा वो यहाँ नहीं आती,” और वह खामोश हो गई.
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आदरणीय प्लाट अच्छा है कथा का पर कहीं कहीं कथा समझ नहीं पायीं हूँ | सादर |
शुक्रिया आदरनीय कल्पना भट्ट जी , आप की बेबाक राय के लिए शुक्रिया.
लालन पालन में ही निहित होता है भविष्य का अँधेरा उजाला ......इस ..मर्म को लेकर रची गई ये कथा अपने उद्देश्य में सफल है ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीय ओमप्रकाश जी .
आदरणीय प्रतिभा पण्डे जी शुक्रिया आप का .
आदरणीय सुधीर द्विवेदी जी आप का कहना सही है. यह कथा एक डाकू की कथा पर आधारित है.
आदरणीय आेम प्रगास जी, लघुकथा का कथानक बढ़ीया है परन्तु इसका निर्वाहन कमजोर रहने से लघुकथा का संप्रेषण ठीक तरह नहीं हो पाया। शब्द विचारों के वाहन भी होते हैं और वाहक भी , लघुकथा में इनका उपयोग करते समय अतिरिक्त सावधानी व कौशलता की आवश्यकता होती है । बहरहाल लघुकथा प्रदत्त विषय से न्याय कर रही है। शुभकामनाएं
आदरणीय रवि प्रभाकर जी बहुत दिनों बाद आप की टिप्पणी मिली. बहुत ख़ुशी हुई. शुक्रिया आप का. लघुकथा को संशोधित किया है.देख कर बताए- अब बात बनी या नहीं.
लघुकथा- माँ
मन और आत्मा में अंतर्द्वंद्व चल रहा था.
मन ने हल्का होने के लिए आत्मा से कहा, “ मुझे पेन मिला था. माँ से कहा. वह कुछ नहीं बोली. मै ने पेन अपने पास रख लिया. मगर जब रास्ते में माँ के साथ जा रहा था, तब मुझे कीमती आभूषण व रूपए से भरा पर्स मिला था. उसे देख कर माँ बड़ी खुश हुई, ‘ ऊपर वाला जब भी देता है छपरफाड़ कर देता है.’ माँ ने यह कहते हुए उस अमानत को अपने पास रखा लिया था.”
“ यह तो गलत बात थी. क्या, भगवान इस तरह छप्परफाड़ कर धन देता है ?”
“ मुझे क्या पता. मै उस वक्त छोटासा बच्चा था. बस चीज़े उठाना सीख गया. और बड़ा हुआ तो छोटेछोटे अपराध करने लगा. मगर, मैं ने उस लड़की की हत्या नहीं की हैं.”
“ गले से चैन किस ने खीची थी ? उसी चैन से उस लड़की का गला कटा था और वह मर गई, ” आत्मा ने जवाब दिया.
“ मगर एक छोटीसी गलती के लिए हत्या, छेडछाड जैसे आरोप और जेल की सजा ? यह तो सरासर गलत व नाइंसाफी है. यदि मै पैसेवाला होता तो जेल से छुट गया होता ?” मन ने कहा तो आत्मा ने जवाब दिया, “ तुम ने गलती तो की है. सजा तो मिलेगी ही. चाहे शारीरिक हो या मानसिक ?” तभी अँधेरी कालकोठारी में गन्दगी में पनपने वाले मच्छर ने उस के एक हाथ पर काट खाया. दूसरा हाथ तब तक उस मच्छर को मौत की सजा दे चूका था, “ गलती की सजा देना तो कुदरत का भी कानून है.”
आत्मा ने कहा तो मन पश्चाताप की आग में जलते हुए बोला, “ सजा केवल मुझे ही मिलेगी ?”
“ नहीं. सभी को."
तभी अंधेरे को चीरती हुई प्रहरी की आवाज़ आई. “राजन ! तुम्हारी माँ मिलने आई है.” जिसे सुन कर मन चीत्कार उठा, “ गलत आदत सिखाने वाली मेरी माँ नहीं हो सकती है ?” और वह कालकोठरी की अँधेरी राह को चुपचाप निहारने लगा.
तभी आत्मा ने कहा, “ माँ ! माँ होती है. अन्यथा वो यहाँ नहीं आती,” और वह खामोश हो गई.
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