आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय सुधीर जी।
आदरणीय तेजवीर जी, लघुकथा की कसावट के लिए आवश्यक है कि उसमें अनावश्यक कुछ न हो। /कुफ़वाड़ा (जम्मू कश्मीर).... लगभग दो बजे होंगे/ यहां शब्द कुफ़वाडा़ से आपका आशय शायद कुपवाड़ा से है, हाड़ कपाने वाली सही शब्द है हाड, बहरहाल...। भाई जी यहां कुपवाड़ा के बाद तीस किलोमीटर और लगभग दो बजे मुझे अनावश्यक प्रतीत हो रहे हैं। यहां कसावट की आवश्यकता थी। एक लघुकथाकार को अपने शब्द बहुत सोच समझ कर खर्च करने होते हैं। और भाई जी सैनिक जब खंदक में होता है तो वहां वह कंबल ओढ़े नहीं रहता। एल एम जी लेकर दुश्मन की चौकी की तरफ जाना तथ्यपरक नहीं लगता। क्योंकि दुश्मन की चौकी और खंदक में अच्छा खासा फासला होता है। कथा में बनावटीपन व नाटकीयता तथा तथ्यों का कमज़ाेर होने से कथा इतनी प्रभावशाली नहीं बन पाई। और असलम का महज अंधेरे में गायब हो जाना, गुप्प अंधकार में कुछ ना दिखना प्रदत्त विषय से न्याय करता है इसमें मुझे शंका है। बहरहाल गोष्ठी में आपकी उपस्थिती हेतु सादर शुभकामनाएं ।
लघुकथा पर उपस्थित होने के लिये हार्दिक आभार आदरणीय रवि जी।आपकी शंकायें काफी हद तक उचित हैं।मगर कुछ चीजों का स्पष्टीकरण भी आवश्यक है ।सैनिक खंदक में रात को कंबल नहीं लेगा तो सर्दी से ही मर जायेगा।यह घटना जो लिखी गयी है, एक व्यग्र या चिढ़े हुये स्वभाव के सैनिक से जुड़ी है, जो भावावेश में कुछ भी कर सकता है क्योंकि एक तरफ़ तो उसे गोली लगी, दूसरी ओर उसे पीछे जाने का आदेश।सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।आप क्या जानना या कहना चाह रहे हैं, कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा।आपके मन में क्या चल रहा है, मैं समझ नहीं पा रहा। आपने इस लघुकथा पर तीन जगह टिप्पणी की है,एक आदरणीय योगराज जी की टिप्पणी पर, दूसरी आदरणीय रवि प्रभाकर जी की टिप्पणी पर, और एक यहाँ।स्पष्ट पूछिये, जो मन में हो। सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।मुझे नहीं मालूम कि फ़ौजी सैनिकों के बारे में आपको कितनी जानकारी है फ़िर भी कुछ बातें मैं स्पष्ट करना चाहूंगा।लघुशंका के लिये खंदक से बाहर जाना क्यों अतार्किक लगा। क्या उसे खंदक में ही जानवर की तरह मल मूत्र करना चाहिये।सरहद पर तो हर वक्त खतरे होते हैं और रात में तो और भी अधिक तो क्या रोज़मर्रा के काम रोक दें।सैनिक भी एक इंसान है।मानवीय कमजोरी उसमें भी होती हैं।सैनिक होने का मतलब कोई महा मानव या लौहपुरुष होना नहीं होता।उनकी भी समस्यायें होती हैं।वे भी विचलित होते हैं।सादर।
वाह वाह और सिर्फ वाह... क्या तो शानदार रचना है...ढेर सारी बधाई प्रेषित है
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