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122 122 122 122

 

सियासत के जरिये हुआ है धमाका

जुबां बंद करिये हुआ है धमाका

 

किसे फ़िक्र है अब लहू फिर बहेगा  

कि वहशत बजरिये हुआ है धमाका

 

कहाँ शांति रहती है सरहद पे यारों

ज़रा आँख भरिये हुआ है धमाका

 

है जाना जरूरी चले जाइयेगा

तनिक तो ठहरिये हुआ है धमाका

 

बड़ी देर से आप चश्मेकफस में 

कि आहिस्ता ढरिये हुआ है धमाका

 

नहीं खून का खेल गर खेल सकते

तो बेमौत मरिये हुआ है धमाका

 

धमाकों से गर यूँ ही डरते रहेंगे

तो बेखौफ़ डरिये हुआ है धमाका

 

मिटेगी यकीनन धमाके की दहशत

अभी धीर धरिये हुआ है धमाका

 

नयी राह चलिये नजरिये बदलिये  

कि अब तो सुधरिये हुआ है धमाका

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

Views: 822

Comment

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Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 9:11pm
'ज़रीया' नहीं मुहतरम "ज़रीआ"
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2017 at 8:46pm

हाँ सादर  समर कबीर साहिब , अब जरीया  हमेशा याद रहेगा . आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2017 at 8:34pm

आ० अनुज , बहुत बहुत आभार

Comment by Samar kabeer on January 17, 2017 at 9:16pm
"ज़रिया"शब्द इतना प्रचलन में आ गया है कि क्या कहें,मैंने ये बातें सिर्फ़ आपके ध्यान में लाने के लिये कही हैं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 8:29pm

अदरणीय बड़े भाई  , बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने ,दिली बधाइयाँ प्रेषित है स्वीकार कीजिये ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:19pm

आ० मिथिलेश जी . बहुत बहुत आभार . समर कबीर साहिब की बात मैं सदैव गंभीरता से लेता हूँ . सादर . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:18pm

आ० सुरेन्द्र जी , आभार . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:17pm

आ० समर कबीर साहिब , जरीया  मुझे पता नहीं था पर हिन्दी शब्दकोष में  में जरिया शब्द स्वीकृत है और गजल में इसे संशोधित  कर पाना अब संभव नहीं है . तकाबुले -ए- रदीफैन मैंने अपने संग्रह में सही कर लिया है . बेख़ौफ़ दरिये व्यंगात्मक है और विरोधाबास  नामक  अंगरेजी अलंकार से अनुप्राणित है . पर आपकी सम्मति सर्वोपरि है . सादर . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:11pm

आ० आरिफ जी , बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2017 at 11:54am

आदरणीय गोपाल सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. आदरणीय समर कबीर जी की बातों पर गौर कीजियेगा. सादर 

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