आदरणीय साथिओ,
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एहसान
गोपी के पिता रामवतार सेठ दीनानाथ के यहाँ ड्राइवर थे| गोपी और दीनानाथ का बेटा आयुष हम उम्र थे तथा सातवीं कक्षा में पढ़ते थे गोपी को सेठ दीनानाथ नेआयुष के ही स्कूल में दाखिला करवा दिया था| अपने बेटे की ही तरह उसको प्यार करते थे |दोनों बच्चे घर पर भी एक साथ ही खेलते थे| गोपी का परिवार सेठ की कृपा के आभार तले पूरी तरह दबा हुआ था |
गोपी पढ़ाई के साथ-साथ खेल कूद में भी आयुष से आगे था | जब भी वो दौड़ में आगे निकलता तो आयुष के चेहरे पर झुंझलाहट दूर से दिखाई देती थी वो दो दिन उससे ठीक से बातें नहीं करता आयुष की माता के स्वभाव में भी फर्क आ जाता था |
गोपी के पिता ने ये बात महसूस की तो गोपी को समझाया “कि बेटा तुम्हारे हुनर पर कोई फर्क नहीं पडेगा तुम जानबूझ कर थोड़ा धीरे दौड़ लिया करो तुम्हारे पापा की नौकरी उनके हाथ में है और उनके एहसान हम नहीं भूल सकते” |
इसी दबाव में आकार न जाने कितनी प्रतियोगिताओं में गोपी जानबूझ कर पिछड़ जाता फिर कई दिन तक गुमसुम रहता|
स्कूल में वार्षिक खेल कूद प्रतियोगिया का दिन आने वाला था पहले तो गोपी ने नाम देने से मना कर दिया किन्तु टीचरों के कहने पर जबरदस्ती नाम देना पड़ा फिर उसने प्रेक्टिस भी बंद कर दी उसके पिता ये सब देख कर भी चुप थे |
आखिरकार वो दिन आ पहुँचा पिता को पहली बार वहां देख कर गोपी हैरान रह गया| रामवतार जल्दी-जल्दी उसके पास पहुँच कर बोला “बेटा आज तुम्हें अपनी कसम से मुक्त करता हूँ हिम्मत लगा कर दौड़ना आज तुम्हे प्रथम देखना चाहता हूँ” |
“किन्तु पापा अब आपकी नौकरी” ?? “वो सब बातें छोड़ तू दौड़ बेटा दौड़”
गोपी निरुत्तर होकर पहेली सी सुलझाता हुआ सा वापस दौड़ पड़ा |
“अब तक क्यों मैं इतना कमजोर था”?अपने दिल से ये सवाल करता हुआ कल नयी नौकरी की तलाश में निकलना है इन सब बातों को गटक कर रामावतार नव ऊर्जा से भरे मैदान की तरफ दौड़ते अपने बेटे को देखता रहा |
मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत बहुत आभार आद० मोहम्मद आरिफ जी ,लिखना सार्थक हो गया |
बहुत बहुत शुक्रिया आद० सुनील भैया आपको कथानक अच्छा लगा आपकी सलाह सही है टीचर्स कर लूंगी |
आ. ओम प्रकाश जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया बहुत- बहुत आभार आपका |
आ. ओम प्रकाश जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया बहुत- बहुत आभार आपका |
अच्छी लघुकथा है आ० राजेश कुमारी जी,प्रदत्त विषय अच्छी तरह परिभाषित हुआ है, मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंI आपकी लघुकथा के सन्दर्भ में कही भाई सुनील वर्मा जी की बातों से मेरी भी सहमति हैI
आ. योगराज जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया बहुत- बहुत आभार आपका |सुनील भैया की बातों का संज्ञान लेकर संकलन में कुछ संशोधित करूंगी
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आ. नीता कसर जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया बहुत- बहुत आभार आपका |