आदरणीय साथिओ,
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धन्यवाद् आदरणीय ओम प्रकाश जी |
आदरणीय कल्पना दी, बहुत ही बढ़ीया लघुकथा कही है आपने । कथानक में निहित कथ्य ने बहुत प्रभावित किया । शानदार कथ्य के माध्यम से आपकी भावानूभूति सरलता, सरलता एवं स्पष्टता से पाठक तक पहुॅंच रही है । / सबको जीवन देने वाला बरगद दादा! तुम हमारे हिस्से की धूप और पानी छीनकर हमारी हत्या क्यों करते हो/ गहन व हृदय स्पर्शी संवेदना प्रस्तुत लघुकथा के कथ्य की सफलता है जो पाठक के हृदय को अंदर तक बेध देने में सक्षम है। लघुकथा का शीर्षक 'दाता' भी व्यंग्यपरक व प्रभावशाली है। हार्दिक शुभकामनाएं निवेदित है । सादर
सादर धन्यवाद आदरणीय सर इस प्रयास पर आपकी टिपण्णी मिल गयी सार्थक हुआ मेरा यह प्रयास |
धन्यवाद् आदरणीय वीर जी |
धन्यवाद् जनाब तस्दीक अहमद खान साहब |
अच्छी कथा हुई है, आदरणीया
आदरणीया कल्पनाजी
लघु कथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। वैसे यह भी कहना गलत न होगा कि सहारे के लिए लताएँ स्वयं लिपटती हैं किसी न किसी वृक्ष से, इसमें बरगद या किसी वृक्ष का क्या दोष। बरगद का निरुत्तर होना समझ से परे है। अंतिम पंक्ति न रहे तो कथा जादा बेहतर लगेगी।
सर आप का कहना अपनी जगह सही है दोष बरगद का नहीं पर यहाँ मैं यह दर्शाना चाह रही थी कि जो कोई खुद को बरगद समझे उसको इस बात का एहसास भी होना चाहिए की आस पास जाने अनजाने ही सही पर किसी न किसीका नुक्सान कर देता है | सादर |
बहुत ही सुन्दर रचना है ,कल्पना जी हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी।आपकी अब तक पढ़ी लघुकथाओं में यह सर्वश्रेष्ठ लघुकथा है।इतने कम समय में आप की प्रगति सराहनीय है।
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