आदरणीय साथिओ,
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इंसानियत और बाजार दोनों ने ही अपनी अमित छाप छोड़ी ही। दोनों की पंच लाइन एक झटका तो देती है पाठक को। बहुत बहुत बधाई।
आदरणीय इकबाल साहब, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार.
शानदार लाजवाब कथाओं के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश बागी जी
आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी, लघुकथाओं पर आपकी सराहना युक्त टिप्पणी पढ़ कर प्रसन्न हूँ , बहुत बहुत आभार.
आदरणीय गणेश भाईजी
1] बहुत सुंदर, इंसानियत जिंदा है । डोम राजा को मालूम है कि माथा देखकर ही तिलक लगाना चाहिए।
2]बहुत सुंदर, स्वार्थ जिंदा है और वह प्यार से जादा भारी है।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें दोनों लघु कथाओं के लिए ।
हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी।एक अरसे के बाद आपकी रचनायें पढ़ने का मौका मिला।मज़ा आगया। दोनों ही लघुकथायें उच्च स्तरीय लेखन शैली का परिचय दे रही हैं।विषय का चुनाव भी आम विषयों से अलग है।पुनः बधाई।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार.
आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी सार्थक टिप्पणी हेतु दिल से आभार.
"हम डॉम ही सही मगर इंसान इंसान में फर्क जानते है यजमान" ये पञ्च लाइन और नपेतुले शब्द से रचित प्रथम लघुक कघा के लिए बधाई आदरणीय | इसी तरही ही दूसरी ल्लाघुकथा की जान भी उसके अन्तिमी पंक्ति ही है | ह्रदयतल से बधाई स्वीकारे
आशीर्वाद हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय लडिवाला जी.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, लघुकथाओं पर आपकी प्रतिक्रया उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार.
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