आदरणीय साथिओ,
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मौका--
"भाई, छा गए हो आजकल, जिसे देखो बस तुम्हारी ही चर्चा कर रहा है", उसने मुस्कुराते हुए बधाई दी|
"अब समाज सेवा में सब करना पड़ता है, तुम भी तो करते हो यह सब", चम्पू ने उसके कंधे पर हाथ मारा|
"वैसे ईद का यह आईडिया कहाँ से आया तुम्हारे दिमाग में, मान गए तुमको", उसने एक हारे हुए खिलाडी के अंदाज़ में कहा|
"अब क्या कहें, जिसे देखो कहीं न कहीं इफ्तार पार्टी में जा रहा था, कुछ अलग करने का सोच रहा था| फिर अचानक यह दिमाग में आया और देख लो इसका असर", चम्पू ने फिर से एक धौल उसको जमाया|
"अरे हम भी गए थे कुछ महीने पहले इन्हीं कैदियों के साथ दिवाली मनाने, किसी ने दूसरे दिन याद तक नहीं रखा", उसने खोये हुए लहज़े में कहा|
"तुम भूल रहे हो, हम भी गए थे होली में, अब तो मुझे भी याद नहीं है| खैर असली मजा तो अपने त्यौहार में ही है, बाकी तो जनता जनार्दन को जितना इस भंवर में उलझा कर बना सकते हो, बना लो", हँसते हुए चम्पू सोफे पर पसर गया|
उसने सामने रखा बियर का ग्लास उठाया और चियर्स करके एक ही घूंट में उसको खाली कर दिया| चम्पू ने भी अपना ग्लास उठाया और धीरे धीरे घूंट भरने लगा|
मौलिक एवम अप्रकाशित
बहुत बहुत आभार आ मोहम्मद आरिफ जी इस उत्साहवर्धन के लिए
बहुत बहुत आभार आ नीता कसार जी इस उत्साहवर्धन के लिए
बहुत बहुत आभार आ तस्दीक अहमद खान जी इस उत्साहवर्धन के लिए
तीज त्यौहार भी अब सियासत के भेट चढ़ने लगें हैं, अच्छी लघुकथा, बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.
बहुत बहुत आभार आ ई गणेश जी बागी जी इस उत्साहवर्धन के लिए
त्योहारों की आड़ में अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षायों को परवान चढाने का यह सिलसिला प्राय: देखने को मिलता हैI प्रदत्त विषय को इस तरीके से परिभाषित करना अच्छा लगा भाई विनय कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
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