आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आप ने ठीक फरमाया.
आ० समर कबीर साहिब ने बिलकुल सही फ़रमाया है, "भंवरों" शब्द दुरुस्त न होने की वजह से शीर्षक जम नहीं रहा हैI इस कथा में बहुत से भंवर हैं शायद तभी आपने यह शीषक दिया है, लेकिन मुझे लगता है कि "भंवरनामा" कहीं बेहतर शीर्षक हो सकता हैI जी.एस.टी ट्रेनिंग में फंसा हुआ हूँ, इसलिए रचना पर खुलकर बात बात थोड़ी में करता हूँ भाई उस्मानी जीI
बच्चों को होड़ और लाड के भंवर में फ़साना ... सामयिक विषय है हार्दिक बधाई उस्मानी जी .. , बहुत सारे भंवर लेने की जगह आप एक ही भंवर लेते तो तो सन्देश अधिक बेहतर ढंग से संप्रेषित होता
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