आदरणीय साथिओ,
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नाम कभी कभी अपने को चरितार्थ भी करते हैं तो कभी सिर्फ एक नाम भर रह जाते हैं| प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति, बधाई आपको
बहुत अच्छा विषय चुना है आपने आदरणीय सुनील भैया सच में नाम में क्या रक्खा है | बेहद पसंद आई आपकी यह कथा | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए |
वाह , बहुत ही बढ़िया लघु कथा बन पड़ी है । भाई सुनील वर्मा जी । बहुत बधाई आपको ।
सुनील भैया बहुत ही अच्छी लघु कथा लिखी है दिल से बधाई लीजिये |
आ. अर्चना जी लगता है आप ने विषय पढने मे कुछ गल्ती की है विषय सत्य नही "सुख" है.
हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी, बेहतरीन प्रस्तुति।अंध विश्वास पर करारा कटाक्ष करती बेहतरीन रचना।
पाँच से नौ (सुख विषयान्तर्गत)
नौकरी से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर ज्योति एक एन. जी.ओ. से जुड गई थी। वह रोज शाम बच्चों को पढाने स्कूल चली जाती थी। आज स्कूल से आते ही बेटे दिनेश ने उसके सम्मुख अपनी बात रखी।
"माँ,स्कूल यह का समय आपकी सेहत पर बुरा असर डालेगा। इसे बदलिए,यह कोई समय है भला! शाम पाँच से सुबह नौ बजे तक?"
"मेरी सेहत को कुछ नहीं होगा बेटा, स्कूल का यह समय रखना मेरी मजबूरी है।" ज्योति ने शांत भाव से बेटे के नकारात्मक रुख पर गौर करते हुए कहा।
"कैसी मजबूरी?"
"सुनना चाहते हो?"
"जी ...बताईए"
"रात में इन बच्चों की माँएं ग्राहकों को खुश करने जाती हैं। कभी बार में, कभी पाँचसितारा होटल में, बडे लोगों के बंगलों पर ...जब ये बच्चे छोटे थे,तब इन्हें वे पलंग के नीचे सुलाती थीं। अब बडे हो गये हैं, रेड लाईट एरिया की ये औरतें अपने बच्चों को मेरे पास छोडकर निकल जाती हैं, उस बदनाम सर्विस इंडस्ट्री में।"
"तो क्या आप ऐसे इलाके में पढ़ाने जाती हैं? इनकी ज़िम्मेदारी भी आप पर है ..!"
"नही,मुझ पर कोई ज़िम्मेदारी नही है। बिन बाप के इन बच्चों को पढ़ाने, उन औरतों को मदद करने में, मुझे असीम सुख मिलता है। ये बच्चे, उस नर्क से निकलकर नयी दुनियाँ बसा ले...बस मेरा यह सपना है। "
"ऐसे सपने कभी साकार नही होते माँ..."
" तुम्हारे पिताजी, मुझे ऐसी ही बस्ती से ब्याह लाये थे। शादी के बाद उन्होंने मुझे पढाया और नौकरी करने की हिम्मत दी। उनका सपना तो पूरा हुआ था फिर मेरा क्यों नही होगा?" यह सुनकर दिनेश पिताजी की तस्वीर के सम्मुख जडवत हो गया।
मौलिक एवं अप्रकाशित
जी आदरणीय सुनीलजी इस त्वरित प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद् कथा को अवश्य संपादित करुँगी
आदरणीय वसुधा गाडगीळ जी बहुत बढ़िया लघुकथा एक अलग विषय के साथ. बधाई आप को.
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