आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही प्यारी लघुकथा कही है आ० ओमप्रकाश भाई जी, वाह वाह!! जिस मोड़ पर आपने लघुकथा को छोड़ा, तो एक गीत की पंक्तियाँ याद आ गईं "वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा". आपने भी बिलकुल वैसा ही इस लघुकथा को एक ऐसा ही खूबसूरत मोड़ दे कर हजारों प्रश्न चिन्ह हवा में उछाल दिए हैं. किसी अनजाने सुख की तलाश में अनैतिक रास्तों की तरफ बढ़ गई उस महिला के साथ आगे क्या हुआ यह पढ़ने वालों के विवेक पर छोड़ दिया गया है. उसे कोई सुख मिला या नहीं मिला लेकिन एक पाठक के तौर पर मुझे यह रचना पढ़कर परम सुख की प्राप्ति हुई, इस लाजवाब लघुकथा हेतु मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें.
इस बढ़िया कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी |
अच्छा विषय चुना आपने ! आदरणीय ।
कथा भी अच्छी बन पड़ी है । बधाई आपको
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