आदरणीय साथिओ,
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धन्यवाद् आदरणीय वीर जी | आपको यह प्रयास पसंद आया सार्थक हुआ लिखना |
धन्यवाद् आदरणीय सुनील भैया |
धन्यवाद जानकी जी |
वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह प्रिय कल्पना जी बहुत ही सुंदर सार्थक लघु कथा लिखी है दिल से ढेरो बधाई लीजिये |
धन्यवाद् आदरणीय राजेश दी |
नई फसल
बड़ी उम्मीदोंं से अपने पनपते व्यापार को देखकर खुश हुआ करता था । अचानक किसी विश्वासघात के कारण भारी नुकसान हो गया वो बौखला गया । परिवार की चिन्ता के कारण वह चारोंं तरफ से निराशा से घिर गया और मन मेंं गलत-सलत विचार पालकर घर
से यूँँ ही चल दिया । काफी देर भटकने के बाद किसी रेलवे क्रासिंंग की तरफ कदम बढ़ा दिये । एक पर भीख मांंगते बच्चोंं पर नजर डालते हुए वो आगे बढ़ा ही था कि पीछे से आवाज सुनाई दी-
" देखो , कैसे माँ -बाप हैं जो बच्चों से भीख मंगवाते हैं ..,शरम भी नहीं आती उनको ,,,,।"
"अरे साहब जी ,माँ-बाप होते तो क्या हम यूँ सड़कों पर भीख माँग रहे होते ,,,,।"जवाब में एक तेज दर्द भरा स्वर सुनाई दिया तो जैसे वह नींद से चौंक गया ।
अचानक उसकी आँखों में अपने मासूम बच्चों के चेहरे तैर गए ।उसे लगा जैसे सूखी बंजर जमीन में कुछ नए अंकुर फूटने को तैयार हैं ।आँखों में पूरी लहलहाती फसल की हरियाली तैर गई और वो उल्टे पैर घर की ओर दौड़ पड़ा । उसके कानों में शायद ये गाना गूंज रहा था -"आना जाना लगा रहेगा , सुख आयेगा, दुख जायेगा ।"
(मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)
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