आदरणीय साथिओ,
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चित्त और पट
सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष जी की प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी, पत्रकारों द्वारा प्रश्न पूछे जा रहे थे.
“सर कल विरोधी दल की रैली थी, रैली की सफलता पर आपको क्या कहना है?”
“बिल्कुल फ्लॉप! विरोधी पार्टी असंवेदनशील हो गयी है, कल की रैली केवल जनता को परेशान करने वाली थी. गली-सड़कें उनके कार्यकर्ताओं से भरी पड़ी थी, विद्यार्थियों, रोगियों, मजदूरों और आफिस जाने वाले कर्मचारियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा”
“सर इसका मतलब आप मान रहे है कि रैली में काफी भीड़ थी.”
“खाक भीड़ थी? मुट्ठी भर लोग थे, जिन्हें पैसो के बल पर और कुछ को तो जान माल की धमकी देकर जबरदस्ती लाया गया था”
“सर यह आप कैसे कह सकते है?”
देखिये... मुझे राजनीति में 40 सालों का अनुभव है, मैं ऐसी दर्जनों रैलियों को आयोजित करवा चुका हूँ।“
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आदरणीया जानकी वाही जी, आपकी सकरात्मक टिप्पणी पाकर लघुकथा गौरवान्वित हुई. बहुत बहुत आभार.
अंतिम पंक्ति में नेता जी ने जो कहा उसके पर्दे के पीछे बहुत कुछ अनकहा है, यही इस लघुकथा की विशेषता है जिसने इस रचना को प्रभावशाली बना दिया है. रचना बेहद कॉम्पैक्ट है कहीं भी कुछ जोड़ने अथवा हटाने/घटाने की गुंजाइश नहीं है. इस रचना की दूसरी महत्वपूर्ण बात है इसका शीर्षक, वाकई राजनेता चित और पट अपने पक्ष में कर लेने के माहिर होते हैं. इतनी देर बाद आपकी लघुकथा देखकर मन हर्षित है भाई गणेश बागी जी, हार्दिक बधाई निवेदित है.
हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी। बेहतरीन लघुकथा ।आज के राजनैतिक माहौल को आईना दिखाती बेहद प्रभावी लघुकथा।
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी, आपकी टिप्पणी सदैव उत्साहवर्धन करती है. सादर.
"तेरा तुझको अर्पण"
आदरणीय योगराज जी, जो जाना-समझा वो आपसे ही, लघुकथा पर आपकी सकरात्मक टिप्पणी पाकर लघुकथा सार्थक हो गयी, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय समर साहब, आपका स्थान ओ बी ओ के साथ साथ हम सभी के दिलों में सदैव विराजमान है, आपकी सकरात्मक टिप्पणी सदैव की भाति उत्साहवर्धन कर रही है, बहुत बहुत आभार आदरणीय.
आपकी कथा बहुत समय बाद पढने को मिली है आदरणीय गणेश बागी सर , बहुत ही शशक्त कथा लिखी है आपने | इस बेहतरीन सृजन के लिए बधाई स्वीकारें | सादर |
आदरणीया कल्पना भट्ट जी, आपसे टिप्पणी पाकर लघुकथा की सुन्दरता कुछ और बढ़ गयी. बहुत बहुत आभार.
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