आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी सुंदर व सार्थक कथा आदरणीय. बधाई .
एक बढ़िया रचना से आयोजन का आगाज करने के लिए बहुत बहुत बधाई आ
बहुत ही सुंदर एवं अर्थगर्भित लघुकथा से आयोजन का शुभारम्भ किया है आ० मोहम्मद आरिफ साहिब. रचना न केवल साफ़ साफ़ सन्देश देने में सफल रही है बल्कि प्रदत्त विषय के साथ भी न्याय कर रही है, जिस हेतु मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें. लघुकथा में जो कहा जाता है वह तो महत्वपूर्ण होता ही है, लेकिन जो नहीं कहा जाता वह उससे भी महत्वपूर्ण होता है - उसे "अनकहा" कहा जाता है. इसकी विस्तृत व्याख्या हालाकि मैं अपने आलेख में कर चुका है, लेकिन आपकी कथा के संदर्भ में मैं कुछ बातें इस विषय पर और कहनी चाहूँगा. एक लघुकथाकार को "अनकहे" और "अनलिखे" में अंतर मालूम होना चाहिए. अपनी लघुकथा का यह वाक्य देखें:
//"वो सौतेली और घर में नरक चलाती है।// हालाकि कोई मनुष्य नर्क नहीं चला सकता, लेकिन यहाँ कमोबेश नर्क के मायने हर कोई समझ लेगा, तो यह हुआ "अनकहा"
//मुझे भी उसमें.....।"// यहाँ क्योंकि वाक्य को "डॉट्स" देकर अधूरा छोड़ दिया गया है तो यह "अनकहा" होने ने बावजूद भी "अनलिखा" होकर रह गया है.
गोष्ठी का शुभारंभ एक बेहतरीन लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
अनकहा और अनलिखा का भेद समझाने हेतु सादर धन्यवाद् सर |
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