आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय सुनील वर्मा जी आप का बहुतबहुत शुक्रिया. आप ने लघुकथा पढ़ कर विस्तृत समीक्षा दी. इस हेतु आप का विशेष आभारी हूँ. आप का कहना सही है. मगर इस कथा में यह दर्शाना मात्र था कि जो हमारे मन में डर होता है वह सदा सच हो जरूरी नहीं है. इस कथा का पात्र के इस अनकहे डर को व्यक्त करना और यह बताना भर था कि हरेक टीटी भ्रष्ट नहीं होता है- यही लघुकथा का उद्देश्य है. सादर.
प्रदत्त विषय को सूक्ष्मता से छू कर निकल गई आपकी कथा .... मन में जमा ली गई धारणाएँ हमेशा सही नहीं होती हैं ये सच है .. हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
बहुत ही सुन्दर लघुकथा है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी. इस रचना में जो अंत तक कौतुहल बरकरार रहा उसने न केवल इस लघुकथा में रोचकता को ही बहुगुणित किया बल्कि उसे एक ही साँस में पढने पर विवश ही किया. जब कोई घटना घिसा-पिटा रूप न लेकर एक अप्रत्याशित ट्रीटमेंट प्राप्त करती है तो उसकी उम्र यकीनन लम्बी होती है. इस लाजवाब प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी सर, सामान्य को विशिष्ट बना कर कहने की कला के धनी हैं आप| यह रचना उसी का एक बेहतरीन उदाहरण है| सादर बधाई स्वीकार करें इस बहुत अच्छे सृजन हेतु| मेरे अनुसार अनकहा विषय को थोड़ा और उभारने की आवश्यकता लग रही है|
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
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