आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा --अंधेरी रात (उजाला )
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अमर सिंह घर से कार्यालय के लिए निकलने ही वाले थे कि अचानक घर पर किसी ने घंटी
बजा दी , बाहर आकर देखा तो थानेदार सूबे सिंह खड़े थे |
ड्राइंग रूम में बैठते हुए अमर सिंह ने पूछा " थानेदार साहिब कैसे आना हुआ "
सूबे सिंह ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा " पिछ्ली रात मुहल्ले में किसी के घर चोरी
नहीं हुई ,यह कैसे मुमकिन हुआ ?"
अमर सिंह ने जवाब में कहा " दो महीने से रात 2 बजे से 4 तक बिजली कटोती चल रही
है ,गलियों में अंधेरे का फ़ायदा उठा कर चोर चोरी करते हैं ,पुलिस गश्त भी नाकाम साबित हुई
सूबे सिंह ने बात बीच में काटते हुए कहा " चोरी रुकी कैसे ?"
अमर सिंह ने मुस्कराते हुए जवाब दिया "मुहल्ले वालों के प्लान के मुताबिक जिनके घर पर
इनवरटर थे उन्होने घर के बाहर गली में एक एक बल्ब लगा दिया , जिस से बिजली जाने पर
गलियों में उजाला हो गया "
यह सुनते ही सूबे सिंह सर का टेंशन ख़त्म करके हैरत से घरों के बाहर लगे बल्बों को देखते हुए
कोतवाली की तरफ चले गये -----
(मौलिक व अप्रकाशित )
उम्दा लघुकथा कही है आ० तसदीक़ अहमद खान जी, बधाई प्रेषित है.
//पिछ्ली रात मुहल्ले में किसी के घर चोरी नहीं हुई// को
//पिछ्ली कई रातों से मुहल्ले में किसी के घर चोरी नहीं हुई//
करना बेहतर न होगा?
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। बेहतरीन और संदेशप्रद लघुकथा।
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