आदरणीय साथिओ,
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अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीया कल्पना जी ! बधाई
आ. कल्पना मैम, अच्छी लगी आपकी लघुकथा. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //अरी उठ कलमुँहीI// माँ का जैसा चरित्र चित्रण आपने किया है उस हिसाब से "कलमुँही" शब्द का प्रयोग सही नहीं है.
2. //अलसाए से स्वर में उत्तर दिया।//
3. // घर के लिए ढेर सारा उजाला लेकर आएंगे ।// "उजाला" शब्द होने के कारण दस-ग्यारह साल की बच्ची के मुँह से यह संवाद अस्वाभाविक लग रहा है.
सादर.
भाई जी हो सकता है कि बेटी ने मां के / अभी कल रात ही तो तुझे रोटी खिलाई थी ,अभी कहाँ से लाऊँ कुछ ? आज तो मिट्टी का तेल भी खत्म हो गया है, आज अगर पैसे न मिले तो घर में अँधेरा रहेगा । " माँ की आँखें सजल हो उठीं/ हो सकता है कि इस बात से आशय हो कि चूंकि मिट्टी का तेल खत्म हो गया है और घर में मिट्टी के तेल से लालटेन से जलती हो । यदि आज पैसे न मिले तो तेल न खरीद पाएंगे और अंधेरा रहेगा।
आदरणीय कल्पना दी विषय को परिभाषित करने का अच्छा प्रयास किया है आपने । परन्तु मॉं का बेटी (जो कि उसकी रोटी कमाने का साधन है) से रूखा व्यवहारा कुछ जम नहीं रहा । संवादों में तनिक संपादक की आवश्यकता महसूस हो रही है। शीर्षक चयन भी श्लाघनीया है। बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएं निवेदित हैं । सादर
बहुत ही सुन्दर लघुकथा कही है आ० कल्पना भट्ट जी, कहना न होगा कि आप लघुकथा की बारीकियाँ काफी तेज़ी से समझ रही हैं. विषयानुकूल इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है.
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