For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव"

अंक-82 की समस्त रचनाएँ

सरसी छंद - समर कबीर

क्षणिकाएँ- मोहम्मद आरिफ़

 

 

जिसके अधरों पर होता है, शब्दों का भंडार ।

उसकी कविता में बस जाता, ये सारा संसार ।।

 

 

नेताओं ने फैलाया है, शब्दों का वो जाल ।

जनता इसमें उलझ गई है, और बुरा है हाल ।।

 

 

गीत,ग़ज़ल,कविता,चौपाई,  सब शब्दों का खेल ।

इनके कारण हो जाता है,  दिल से दिल का मेल ।।

 

 

दिया किसी ने है शब्दों से भाषा का उपहार

कुछ लोगों ने बना लिया है, इसे आज व्यापार

 

 

उसी समय हासिल होता है,  हर भाषा का ज्ञान ।

जिस दम हो जाती है अपनी, शब्दों से पहचान ।।

 

(1) अपनों की नज़रों में गिर जाता है

तो "उपेक्षा" बन जाता है शब्द ।

 

(2) दया और करुणा के हृदय में उतरता है

तो "संवेदना" बन जाता है शब्द

 

(3) भरोसे की हत्या करता है

तो "विश्वासघात" बन जाता है शब्द ।

 

(4) सहनशीलता, ममता , त्याग का

आँचल ओढ़ लेता है

तो "माँ"बन जाता है शब्द ।

 

(5) अर्थों के ख़ज़ाने बताने लगे

तो "शब्द-कोष" बन जाता है शब्द ।

 

(6) जब साकार निराकार को

व्याख्यायित करने लगे

तो "ब्रह्म" बन जाता है शब्द ।

ग़ज़ल- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

अतुकान्त- टी. आर. शुक्ल

बनाओ मत कोई पर्वत कभी विकराल शब्दों का

न ही व्यवहार में खोदो कि गहरा ताल शब्दों का ।

 

हमेशा ध्यान ये रखना हो निश्छल बात ही केवल

निगल पाए न रिश्तों को कुटिल इक जाल शब्दों का।

 

चयन संदर्भगत हो तो तना रहता है हर हालत

नहीं तो झुक ही जाता है हमेशा भाल शब्दों का।

 

सहेजो पर चलन में भी हमेशा उनको रखो तुम

महज कोषों में अच्छा तो न होगा हाल शब्दों का।

 

जो भागा करते थे अब तक निडर वो हो नहीं पाए

समझ बचपन में पुस्तक को बड़ा जंजाल शब्दों का।

 

जिसे भी चाहिए जैसा कि चुनकर वैसा ले जाए

लगा मेला दुखी पीड़ित जवाँ खुशहाल शब्दों का।

 

कभी खामोशियाँ भी यूँ मचल के बोल देती हैं

तभी दिखता है बौनापन सहज वाचाल शब्दों का।

 

सँभल कर संत कहते हैं चलाना बीच रिश्तों के

कभी खुद को ही काटे है दुधारी फाल शब्दों का।

 

उदासी या चुभन देखे तो है दुत्कार देती नित

भरा हो प्यार तो चूमे सनम झट गाल शब्दों का।

 

कभी चमके फलक पे तो कभी माटी में मिल जाते

बदल जाता है हम जैसा मुसाफिर काल शब्दों का।

दीनों के चिथड़ों पर मटमैले धब्बों और

जीर्ण देह को रोटी के टुकड़ों पर टिके देख,

उनके मन में फूट पड़ा कवित्व !

गन्दगी और दुर्गंध पर,

लालायित मन ने उन्हें ऐसा दबोचा,

कि रचे गये क्रन्द छन्द !

सुनकर जिसे, श्रोता करने लगे आह ! वाह !

और,

कल्पना की अदभुद उड़ान पर बांधने लगे तारीफ के पुल !

जबकि, दीनता को समूल नष्ट करने की ठान,

सबको प्रेरित करने वाले कवि ,

कभी दीनों के समीप से भी नहीं गुजरे !

उनकी व्यथा कथा की नीव डाली गई वातानुकूलित कमरे में ,

और बिम्बों को उभारा पत्र पत्रिकाओं के कार्टूनों ने।

 

मुझ फक्कड़ को बाजार में हुए दर्शन,

दिव्यता की इस विभूति के ।

जहां मेरी जीर्ण दशा पर तरस खाकर उन्होंने,

अपने सहचर कवि मित्र से पचास रुपये देने को कहा

जो उसके सामर्थ्य में थे नहीं, और !

सुसम्पन्न कवि महोदय के कंजूसी कोष से बाहर कैसे आते ?

लालसा लिये पीछे पीछे चलता मैं,

सुनता हॅूं कि, 'यह सब शब्दों का खेल है !'

कविता हो या दूसरों को देख उत्पन्न भावों की अभिव्यक्ति.....

अर्थात् "शब्द " । इसी का जमा, इसी का खर्च.....!

मैं, भी तभी से.... 'शाब्दिक ' जमा खर्च की ट्रेनिंग स्वरूप...

कवित्व धारा में बहते रहने की चेष्टा में व्यस्त हॅूं !

दोहा मुक्तक- सतीश मापतापुरी

ग़ज़ल- मनन कुमार सिंह

 

 

शब्द बिना भाषा नहीं, बिन भाषा न ज़बान ।

अगर ज़बान खुले नहीं, गूँगा है इन्सान ।

पर शब्दों को तोलकर, ही मुँह खोलें आप,

उचित शब्द मिलता नहीं, रखिए बंद ज़बान ।

 

 

तेज धार है शब्द की , शब्द तेज हथियार ।

शब्दों के सम्मुख भला , क्या कर सके कटार ।

रहिए सजग सदैव ही , शब्द न जाया होय ,

इसीलिए तो कलम से , तेज नहीं तलवार ।

बात कहता हूँ दिलों की,शब्द हूँ

कह रहे मुझको मदारी,शब्द हूँ।

 

घाव देता हूँ किसीको,कह रहे

आस बनता हूँ किसीकी,शब्द हूँ।

 

आग हूँ मैं गर किसीके वास्ते

प्यास हरता हूँ किसीकी,शब्द हूँ।

 

शूल बनकर चुभ गया मैं ही कभी

खुशनसीबी मैं कभी की,शब्द हूँ।

 

आसमानों में सजाता आपको

फिर धता मैंने बता दी,शब्द हूँ।

दोहा ग़ज़ल- बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

ताटंक छंद- अशोक कुमार रक्ताले

मान और अपमान दउ, देते आये शब्द।

अतः तौल के बोलिये, सब को भाये शब्द।।

 

सजा हस्ति उपहार में, कभी दिलाये शब्द।

उसी हस्ति के पाँव से, तन कुचलाये शब्द।।

 

शब्द ब्रह्म अरु नाद है, शब्द वेद अरु शास्त्र।

कण कण में आकाश के, रहते छाये शब्द।।

 

शब्दों से भाषा बने, भाषा देती ज्ञान।

ज्ञान कर्म का मूल है, कर्म सिखाये शब्द।।

 

देश काल अरु पात्र का, करलो पूर्ण विचार।

सोच समझ बोलो तभी, हृदय सजाये शब्द।।

 

ठेस शब्द की है बड़ी, झट से तोड़े प्रीत।

बिछुड़े प्रेमी के मनस, कभी मिलाये शब्द।।

 

वन्दन क्रंदन अरु 'नमन', काव्य छंद सुर ताल।

भक्ति शक्ति अरु मुक्ति का, द्वार दिखाये शब्द।।

 

1.

अक्षर-अक्षर के जुड़ने से, बनता शब्दों का सोता |

शब्द निरर्थक हैं वे सारे, जिनका अर्थ नहीं होता ||

सार्थक शब्दों की ध्वनियों से, अर्थ निकलते हैं नाना |

गीत छंद कविता हैं देखो, शब्दों का ताना बाना ||

 

2. 

रूप बदलता ना हो जिनका, अविकारी कहलाते हैं |

और विकारी शब्द देख लो , रूप बदलते जाते हैं ||

तत्सम भी हैं तद्भव भी हैं, शब्द हमारी भाषा के |

और कई हैं अरबी तुर्की, मानव की अभिलाषा के ||

 

 

3.

रूढ़ शब्द हैं जिनके टुकडे , अर्थ नहीं दे पाते हैं |

सार्थक शब्दों के जुड़ने से, यौगिक बनते जाते हैं ||

योगरूढ़ हैं यौगिक लेकिन, भिन्न अर्थ ये देते हैं |

शब्द-शक्ति का हम कविता में, नित प्रयोग कर लेते हैं||

ग़ज़ल- सुरेंदर इंसान

ग़ज़ल- तस्दीक अहमद खान

 

 

बहुत तेज तलवार है शब्द मेरे।

नया एक संसार है शब्द मेरे।।

 

 

मुक़म्मल ग़ज़ल एक दिन मैं कहूँगा।

अभी बीच मझदार है शब्द मेरे।।

 

 

हर इक शेर में कुछ नया मैं कहूँगा।

सुनो आज तैयार है शब्द मेरे।।

 

 

कभी एक सा वक़्त रहता नहीं है।

समझती न सरकार है शब्द मेरे।।

 

 

कहे बात अपनी इशारो में 'इंसान'।

समझता न क्यों यार है शब्द मेरे।।

यूँ तो यह तीन ही हर्फ़ का लफ्ज़ है |

इश्क़ लेकिन बहुत ही बड़ा लफ्ज़ है |

 

कहते कहते ज़ुबां जिसको थकती न थी

सिर्फ़ वह दोस्तों दिल रुबा लफ्ज़ है |

 

पूछिए सिर्फ फ़िरक़ा परस्तों से यह

प्यार ,नफ़रत में बद कौन सा लफ्ज़ है |

 

कर नहीं सकता इंसान जिसको कभी

सिर्फ़ और सिर्फ़ वह मुअजिज़ा लफ्ज़ है |

 

उसने जिस नाम से मुझको आवाज़ दी

लोग कहते हैं वह बावला लफ्ज़ है |

 

रु बरु उनके जो बोल पाया न मैं

वह ख़ुदा की क़सम बे वफ़ा लफ्ज़ है |

 

उनसे हंस के जो बोला है वक़्ते सितम

सिर्फ़ तस्दीक़ वह शुक्रिया लफ्ज़ है |

छंदमुक्त- मनोज कुमार यादव

अतुकांत- प्रतिभा पाण्डे

शब्द मौन रहकर भी बहुत कुछ बोलते हैं

बन्द मुट्ठियों का हर राज़ खोलते हैं।

 

हों अगर ये मीठे तो मान हैं बढ़ाते

शब्द ही ज़हर भी जिंदगी में घोलते हैं।

 

दोस्ती करा दें ये दुश्मनी बढ़ा दें

हर एक आम को ये खास बना दें।

 

शब्द में वजन हो तो बुलन्दियां छुला दें

हों अगर ये झूठे तो नज़र से गिरा दें।

 

अपनी ही बात बोलें तो सभी को पका दें

जो दूसरों की बोलें तो बड़ा ये बना दें।

 

बड़े बड़ों को करते ये शब्द ही नि:शब्द

तभी बोलने से पहले हर शब्द तोलते हैं।

 

शब्द बोलते हैं ,ये शब्द बोलते हैं

हर राज़ दिल का ये खोलते हैं।

प्रेम संवेदना इंसानियत

सूखे, निचुड़े हुए, बेमानी और हल्के

शब्द भर रह गए हैं ..बस

 कभी कोई पकड़ कर 

कविता कहानी भाषणों में

ठूंस देता है

 तो जिन्दा हो उठते हैं 

जोश से भर जाते हैं

भीग जाते हैं,  भारी हो जाते हैं

 अपने होने के एहसास से

 सीना भी फुला लेते हैं कुछ देर को 

 

मंचों से खूब गाओ

 डायरी पन्नों पर सहेजो

थपथपाकर सुलाओ

 बस  वहीँ तक,  वहीँ तक रखना  

इन सूखे, निचुड़े हुए बेमानी

 और हल्के शब्दों को

क्यों कि बाहर कोई नहीं जानता अब इन्हें 

चोका- राजेश कुमारी

अतुकांत - दयाराम मेठानी

 

घुप्प अँधेरा

कुछ नीरव क्षण

सीलते मेघा

टप-टप बरसे

खुली किताब

विकलित आखर  

इतना भीगे 

तोड़े तटबंधन

हो उत्तेजित 

गहन भँवर में

मिलके  डूबे

लवणित अम्बर 

पिघला सारा

मिलकर सागर

हो गया खारा

कलम ने पीकर

प्यास बुझाई

हिय व्यथा सकल

शब्द ब शब्द

कागज़ पर आई

 

शब्द गीत है,

शब्द ग़ज़ल है

शब्द प्यार है,

शब्द तकरार है

शब्द ज्ञान है,

शब्द विज्ञान भी है

शब्द मिलन है

शब्द विरह भी है

शब्द से अर्थ है

अर्थ से,

अनर्थ भी है

शब्द घाव देता है,

शब्द,

मरहम भी लगाता है

शब्द ही ईश्वर है

शब्द ही अल्लाह है

शब्द ही जीवन है

शब्द ही संसार है

बिना शब्द के

सूना यह संसार है।

कविता- श्याम मठपाल

हाइकू- कल्पना भट्ट

भावनाओं के आकार हैं शब्द

विचारों के साकार हैं शब्द

भाषा के अवतार हैं शब्द

अर्थ जगत के संसार हैं शब्द

ख़ुशी-ग़म को शब्दों ने पिरोया

सुखद सपनों में शब्दों संग सोया

संबंधों की खुशबू शब्दों में पाया

मेरा परिचय शब्दों ने कराया

शब्द ने सजाई प्रेम की क्यारी

शब्द से लगती दुनिया प्यारी

शब्द की महिमा लगती न्यारी

शब्द से सजी आँगन फुलवारी

शब्दों ने स्वाभिमान जगाया

गैरों को भी अपना बनाया

शब्दों ने इतिहास रचाया

हमारी संस्कृति से परिचय कराया

शब्द न होते तो इशारे होते

सूर्य ,चाँद न तारे होते

शब्द बिन संगीत धारे न होते

गीत -ग़ज़ल के प्यारे न होते

१ कैसे कहेगा

कोई बात मन की

बिना शब्द के |

२ शब्दों की माला

शोभे कविता बन के

मधुर रचे |

३ कड़वे शब्द

चुभे हृदय में जब

अपना कहे |

४ शब्द श्रृंगार

खिल उठे तन मन

सावन जैसे |

५ पिया मिलन

तरसे है मन जब

न होते शब्द |

६ शब्दों के बाण

जब भी हैं चलते

घाव करते |

७ प्यार के लिए

होते शब्द जरुरी

समझे नैन |

छंद – अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

अतुकांत- कल्पना भट्ट

 

ताटंक छंद

 

शब्द गुलामी भूल न पाये, ये कैसी आजादी।

बस अंग्रेजी पनप रही है, बाकी की बर्बादी॥

 

 

लिखें शब्द को जैसा भी हम, बस वैसा ही पढना है।

अब ऐसी सक्षम  हिंदी को, लेकर आगे बढ़ना है॥

 

 

लाखों शब्दों की ये हिंदी, लुप्त प्राय ना हो जाये।

आजादी के बाद न देखा, क्या खोये हम क्या पाये॥

 

 

अब तो सोचो भारत प्रेमी, त्याग विदेशी भाषा को।

अपना लें हम पूरे दिल से, प्यारी देशी भाषा को॥

 

 

है एक शब्द इज्जत जिसकी, परवाह कोई करता नहीं।

छापा मारो भरो जेल में, सजा से कोई डरता नहीं॥

 

 

पशु कहने पर क्रोधित होता, लड़ता है गुर्राता है।

इंसान बड़ा बेवकूफ है, शेर कहो मुस्काता है॥

 

दोहा छंद

 

योग शब्द योगा हुआ, जग में हुआ प्रचार।

आयुर्वेदा से करें, रोगों का उपचार॥

 

 

शब्दों में ही प्यार है, शब्दों से मत मार।

एक शब्द घायल करे, एक करे उपचार॥

 

 

देवा गणेशा शिवा कहें, रामा हैं प्रभु राम।

देशी अंग्रेजों ने किया, उल्टा सीधा काम॥

शब्द न होते साथ तो

क्या होता ?

भाषा न होती साथ तो

क्या होता ?

कैसे देते प्रतिक्रिया अपनी

हाँ ! इशारों से

आदि मानव की तरह

अपनी प्रतिक्रियाओं को चित्रित कर

किसी काली तंग गुफाओं में

पेड़ से चुराते रंगो को

और बनाते कोई चित्र

अद्भुत होती है यह भी

क्रिया खुद को व्यक्त करने की |

प्यार दर्शाते हैं शब्द

कभी नफरत के अंगारे

विभिन्न रंगो की ओढ़े चुनरिया

शब्दों की माला लगे इंद्रधनुषी |

शब्द संज्ञा है

बोले तो क्रिया बन जाते

विभिन रसों को पीकर ही तो

कविता ,छंद , गीत बन जाते |

बिना शब्द के विचार कहाँ है ?

बिना इसके संजोयें कैसे

कोई अपने ख्वाबों को

प्रतिक भी यही

प्रतिक्रिया भी इन्हीं से

कहते हैं न

एक बार जो फिसली जुबां

लौटते नहीं हैं शब्द फिर से

फिर क्यों दुखाएं भावना किसीकी

क्यों बोलें ऐसे शब्द किसीसे ?

पिरोएं एक माला प्रेम से

शब्दों को बनाएं मोती

सज जाए यह गर हर अंग पर

फिर फैलेगी प्यार की ज्योति |

 

सरसी छंद- सुनन्दा झा

ग़ज़ल- राजेश कुमारी

 वर्णों की माला देती है ,शब्दों को आकार ।

शब्दों की माया में उलझा ,है सारा संसार ।

 

मन के कोरे कागज पर जो ,उभरे भाव अपार ।

शब्दों के रंगों में सजकर ,हो जाते साकार ।

 

शब्द छिपाये अपने भीतर ,सुख दुख ईर्ष्या द्वेष ।

कभी बहे रसधार प्रेम की ,कभी झलकता क्लेष ।

 

कुछ शब्दों के श्रवण मात्र से ,छा जाता उन्माद ।

करे प्रहार कभी तो ऐसे ,होता घोर विषाद ।

 

करें हृदय को घायल जब जब ,इसके तीखे बाण ।

बन जाता नासूर हृदय का ,जब तक तन में प्राण ।

 

कभी बने मनुहार किसी की ,कभी बने अरदास ।

शब्दों ने ही रखा सुरक्षित ,भारत का इतिहास ।

 

अगर न होते शब्द जहां में,कहाँ पनपता प्यार ।

नीरस होती धरती जैसे ,दुल्हन बिन श्रृंगार ।

 

शब्दों के गहरे चितन में ,डूबे जो इंसान ।

गद्य ,पद्य ,छंदों को रचकर ,लेखक बने महान ।

हो गया गुम हजार शब्दों में

कैसे ढूँढूं मैं प्यार शब्दों में

 

रंग बदलें वो गिरगिटों की तरह  

है कहाँ एतबार शब्दों में

 

दास्ताँ जो शुरू हुई थी तभी  

हो गई खत्म चार शब्दों में

 

जिस मुहब्बत के ख़्वाब बुनती थी 

हो गई तार तार शब्दों में

 

ए जुबां बोल दे जरा कुछ तो 

दिल का निकले गुबार शब्दों में

 

दिल पे करते हैं वार सीधे ही 

जो छुपे  बैठे  ख़ार शब्दों में

 

जो  रवैया  नहीं पसंद हमें

वो  करें अख़्तियार शब्दों में

 

क्या ग़ज़ल गीत क्या कहानी हो

लिख भी डालो विचार शब्दों में

 

तीर  तलवार हो या हो खंजर 

उससे ज्यादा है धार शब्दों में

कुण्डलिया छंद- सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'

अतुकांत- नयना(आरती)कानिटकर

 

१.

गीत कहानी या ग़ज़ल, सब शब्दों का खेल

भाव एक आकार ले, शब्द करें जब मेल

शब्द करें जब मेल, कहीं अमृत रस बरसे

आये जिन्हें न शब्द, हमेसा वो नर तरसे

शब्दों के अभिप्राय, समझते हैं जो ज्ञानी

मन भावों के साथ, गढ़े वों गीत कहानी

 

२.

हिय से उपजे शब्द तो, हरते मन की पीर

वहीं कहीं पर व्यंग बन, घाव करे गम्भीर

घाव करे गम्भीर, कहीं उठती तलवारें

फैला माया जाल, दिखाये दिन में तारें

शब्द बने आवाज़, कहे सजनी जब पिय से

शब्द ओम औ ब्रह्म, यहीं उपजे जब हिय से

आज अचानक

मिला एक  था अपना पिटारा

जो सहेजा था वर्षो से

अलमारी के एक कोने में

जिसे दिल और दिमाग ने दफ़्ना दिया था उसे बहुत पहले

हौले से खोला तो

एक हूक सी उठी दिल के किसी कोने में

एक बदबूदार झोंका प्रवेश कर गया नथुनो में

सड गये थे वे सारें शब्द

जो लिखा करते थे प्यार की भाषा

कलम भी थी साथ में

तब  दिल के  दूसरे कोने में

एक उम्मीद जागी

कि फिर शब्द प्रस्फ़ुटित होगें

हवा के स्पंदन से बह उठेंगे  मन से

टपक पडेंगे  नयनों से बनाने को एक दस्तावेज

ग़ज़ल- मुनीश तन्हा

दोहा छंद - सुशील सरना

 

दिल को दिल से जोड़ते हैं लफ्ज़ ही

हादसों को मोड़ते हैं लफ्ज़ ही

 

मौन लाता आदमी नज़दीक है

आदमी को तोड़ते हैं लफ्ज़ ही

 

अम्न पैदा हो जहां में किस तरह 

ज़हर भी तो छोड़ते हैं लफ्ज़ ही

 

तू खुदा की याद रख तहरीर को

सर हजारों फोड़ते हैं लफ्ज़ ही

 

इक नया तूफान लाते रोज वो

जहन में जब दौड़ते हैं लफ्ज़ ही

 

कहीं शब्द में नीर है, कहीं शब्द में पीर।

शब्द में है छुपी हुई, हर रांझे की हीर।।१।।

 

अंतर्मन के भावों का, शब्द करें शृंगार।

रूठे प्रीतम के लिए, शब्द करें मनुहार।।२।।

 

शब्द मिलाये ईश से, शब्द भाव आधार।

शब्द में सृजन छुपा , शब्दों में संहार।।३।।

 

शब्द में अल्लाह बसे, शब्द में बसे राम।

हर मनके में शब्द के, बसे कृष्ण बलराम।।४।।

 

कितना भी गहरा करें , घाव भले ही तीर।

पर शब्दों के शर सदा, घाव करें गंभीर।।५।।

हाइकू- मनीषा सक्सेना

अतुकांत-मनोज कुमार यादव

 

खो देते अर्थ

भारी भारी से शब्द

सरल कहें

शब्द सरल

भले, सुने न जाएँ

रखें महत्व

शब्द ही शब्द

ढूँढ़ते हैं भीड़ में 

अपने अर्थ

कड़वे शब्द

चाशनी डूबे हुए

पचाते लोग

शब्दों की मार

घाव करे गंभीर

ता उम्र रहे

शब्द चुनाव

सादे, सोचे-समझे

डाले प्रभाव

शब्द मीठे से

कानों में मिश्री घोले

काम निकाले

ढाढस देते

फेरे सिर पे हाथ

मौन हैं शब्द

हैं बिके हुए

हाँ में हाँ करें शब्द

जाल बिछाएं

१०

मोती से शब्द

आँखों से ढुलकते

हाल ए दिल

११

सीटी से शब्द

सुहावना मौसम

हाल ए बयाँ

१२

चांदनी रात

निशब्द हम दोनों

बातें करते

१३

शब्दों से ज्यादा

शब्दहीन उपेक्षा

सालती टीस

१४

मिले न शब्द

प्राकृतिक वैभव

निहारें सब

 

आज अचानक ही

बरगद की छांव में

बैठे बैठे कुछ

शब्दों से मुलाकात हुई

चोरी चोरी चुपके चुपके

जिह्वा से कुछ बात हुई

और फिर बह निकले

कुछ छन्द कुछ दोहे

कुछ कविताएं और कुछ

सुरमयी ग़ज़लें।

मन में जैसे शब्दों का

एक जाल सा बुन गया हो।

मुस्कुराते शब्द

खिलखिलाते शब्द

इश्क में गुनगुनाते शब्द

जुदाई के ग़म में

मुंह छुपाते शब्द।

शब्दों के इस विशाल

समूह को संभाल पाना

कोई सरल कार्य न था

किन्तु मैंने हिम्मत दिखाकर

एक एक शब्द को कागज पर

अपनी लेखनी से बटोरना

आरम्भ किया, बटोर रहा हूं

और जीवन की अंतिम सांस तक

बटोरने का प्रयास करता रहूंगा।

-------------------------------------------------

 

 

छंद- अनहद गुंजन

 

 

छंद कैसे लिखूँ बन्ध कैसे लिखूँ,

रूठ ये जो गयी है सुनो लेखनी।

व्योम का प्रेम या दर्द भू का लिखूँ,

शब्द को चेतना से चुनो लेखनी।

कृष्ण का प्रेम राधा कि मीरा लिखूँ,

भाव सारे जिया के बुनो लेखनी।

टूटता आसमां से सितारा लिखूँ,

छंद लिक्खो सवैया गुनो लेखनी।

 

शब्द-शब्द दर्द हार,

मात सुन ले गुहार,

गर्भ में पुकारती है,

नर्म कली बेटियाँ।।

रोम-रोम अनुलोम,

हो न जाए श्वांस होम,

टूटे न ये कभी स्वप्न,

चुलबुली बेटियाँ।।

सृष्टि की सृजनहार

कल की छिपी फुहार

शूल सी नही है होती,

पीर पली बेटियाँ।।

तेरा ही अभिन्न अंग,

भरो तो नवीन रंग

बेटों को है देती जन्म,

धीर ढली बेटियाँ।

 

 

समाप्त

मंच संचालक

मिथिलेश वामनकर

(सदस्य कार्यकारिणी टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

 

Views: 1038

Reply to This

Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब, ओ बी ओ लाइव महा उत्सव अंक -82 के संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

हार्दिक आभार आपका.................

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service