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ग़ज़ल - आप दिल में समाने लगे

212 212 212


आप फिर याद आने लगे ।
क्या हुआ जो सताने लगे।।

दिल तो था आपके पास ही ।
आप क्यूँ आजमाने लगे ।।

क्या कमी थी मेरे हुस्न में ।
गैर पर दिल लुटाने लगे ।।

रफ्ता रफ्ता नजर से मेरी ।
आप दिल में समाने लगे ।।

क्या हुआ आपको आजकल ।
बेसबब मुस्कुराने लगे ।।

कर गयी सच बयाँ आंख जब।
आप क्यूँ तिलमिलाने लगे ।।

जाम साकी पिला मत उन्हें।
अब कदम डगमगाने लगे ।।

जब निभाने की चर्चा हुई ।
आप तो मुँह चुराने लगे ।।

इक मुलाकात पर लोग क्यूँ।
उंगलिया फिर उठाने लगे ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2018 at 4:57pm

सेवार्थ श्री योगराज प्रभाकर जी 

आ0 आपकी बेवसाइट में कमी है । मैं हमेशा व्यवस्थित करके भेजता हूँ परंतु पोस्ट होते ही सारे स्पेश खत्म हो जाते हैं और रचना गद्य जैसी दिखने लगती है । कृपया टेक्निकल टीम का सहयोग आपेक्षित है । और किसी वेबसाइट पर ऐसा नही होता सिर्फ ओबीओ में हो रहा है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2018 at 11:16am

हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on February 11, 2018 at 7:54am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,

                             छोटी बह्र की बहुत ही प्यारी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं जैसे:-आजमाने/आज़माने , नजर/नज़र , रफ्ता-रफ्ता/रफ़्ता-रफ़्ता ,कदम/क़दम ,मुलाकात/मुलाक़ात आदि । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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