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मुद्दत से उलझा रहता है ।
यह मन कब तन्हा रहता है ।।
मिलता है अक्सर जो हंसकर ।
वो गम को पीता रहता है ।।
जो गुलाब भेजा था तुमने ।
वो दिल मे खिलता रहता है ।।
कब आओगे मेरे घर तुम ।
खत में वो लिखता रहता है ।।
मुझसे मेरा हाल न पूछो ।
दिल मेरा रोता रहता है ।।
कुछ तो जलता है तेरे घर ।
रोज़ धुंआ उठता रहता है ।।
शायद उसको इश्क हुआ है ।
मुझसे वो मिलता रहता है ।।
जख्म मिले हैं मुझको उनसे।
जिनसे ज़ख़्म छुपा रहता है ।।
आंख चुराने वालों को ही ।
मेरा दर्द पता रहता है ।।
प्रेम दिवस पर भूल न जाना।
मेरा मन घुटता रहता है ।।
एक जमाने से वो मुझको।
चुपके से पढ़ता रहता है ।।
देख मुसाफ़िर सँभल के चलना ।
प्यार सदा अंधा रहता है ।।
परवानों के मरघट खातिर ।
एक दिया जलता रहता है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 मो0 आरिफ साहब आभार
आ0 लक्ष्मण धामी साहब शुक्रिया ।
आ0 तस्दीक अहमद खान साहब शुक्रिया ।
आ. भाई नवीन जी , सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब नवीन साहिब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें। शेर7 ऐब-तकाबुले रदीफैंन हो गया , यूँ करसकते हैं "इश्क़ हुआ है शायद उसको "
आखरी शेर में बात साफ नहीं हो सकी , "यूँ करके देखिए "मर घट पर भी ए परवानों "
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,
छोटी बह्र में उम्दा ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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