2212 2212 2212 12
शायद तेरी नज़र को मिला इंतखाब है ।
उगने लगा मगरिब में कोई आफताब है ।।
उड़ते परिंदे खूब हैं इस जश्ने प्यार में ।
छाया मुहब्बतों में कोई इन्क्लाब है ।।
मुद्दत से मैं था मुन्तज़िर अपने सवाल पर ।
ख़त में किसी का आज ही आया जबाब है ।।
कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।
कैसा नशा है इश्क़ में कैसा शबाब है ।।
फितरत नई है आपकी बहकी शबा मिली ।
चेहरा नया जो आपका खिलता गुलाब है ।।
इतनी जफ़ा के बाद भी कायम वफ़ा रही ।
मेरे लिए क्या आपने रक्खा ख़िताब है ।।
कब तक रहेगा कौन मेरे साथ उम्र भर ।
सच मानिए ये जिंदगी होती हबाब है ।।
कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।
कैसा नशा है इश्क़ में कैसा शबाब है ।।
पर्दे हजारों ओढ़ के मिलता है आजकल ।
किसने कहा है आदमी वह बेनकाब है ।।
अमनो सुकूँ के साथ मे जीना हराम अब ।
इस शह्र में हर शख्स की सुहबत खराब है ।।
यूँ ही नहीं वो आपकी तारीफ़ कर गया ।
वह शख्स पढ़के आपको लिखता किताब है ।।
बैठे दिखे हैं रिन्द भी लम्बी कतार में ।।
शायद सनम की आंख से छलकी शराब है ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 लक्ष्मण धामी साहब बहुत बहुत शुक्रिया
बैठे दिखे हैं रिन्द भी लम्बी कतार में ।।
शायद सनम की आंख से छलकी शराब है ।।
क्या कहने..... हार्दिक बधाई ।
आ0 मुहम्मद आरिफ़ साहब बहुत बहुत शुक्रिया
आ0 आमोद श्रीवास्तव जी सप्रेम आभार
वाहःहः सर बहुत खूब। सादर नमन
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,
उम्दा ग़ज़ल , अच्छे अश'आर । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । कुछ नुक्तागत अशुद्धियाँ हैं बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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