आदरणीय साथिओ,
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ये बेहतर करने की अपेक्षा ही तो हमेशा बेहतर करने को प्रेरित करती है सुनील भाई! ह्रदय से आभार, ये स्नेह यूँही बनाए रखिएगा।
ये जो चार पॉइंट आपने कहे वही तो एक युवा कामकाजी स्त्री के लिए दिवास्वप्न हैं, क्या इतनी सरलता से दस लड़कियाँ एक बस में सफर कर सकती हैं?कभी कहीं पर किसी लड़की का युवा सहयोग कर भी दें, तो अधेड़ उम्र व्यक्तियों को अक्सर तक़लीफ़ हो जाया करती है!,अँधेरे का लाभ उठाने वाले तो बहुत खड़े रहते है, रौशनी दिखाने वाला मिलना सच में दिवास्वप्न है,लड़की के असहज होने पर भी बगल की सीट पर चिपककर बैठने वाले बहुत मिल जाते हैं! उनके चेहरे का भाव पढ़कर दो सीट छोड़कर बैठने वाला मिलना ही तो दिवा स्वप्न है! मेरी समझ से तो यही वो पॉइंट थे जो एक लड़की के लिए चाहना आज भी समाज में दिवा स्वप्न ही हैं।
अगर मैं अपना कथ्य स्पष्ट नहीं कर सकी तो ये मेरी लेखकीय असफलता है,पर लघुकथा हँसाने का माध्यम कम से कम मेरे लिए तो कतई नहीं है।
आपने मेरी लेखनी पर विश्वास दिखाया उसका पुनः आभार! यकीन कीजिए आपके कहे को बिल्कुल भी अन्यथा नहीं लिया है मैंने।
बहुत अच्छी लघुकथा आदरणीय सीमा जी ,बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए ,सादर
धन्यवाद बरखा जी
कथा के जरिये आपने बेहतर संदेश दिया है यदि बाँस अपने कर्मचारियों का ख़्याल रखें तो वे अपना सर्वोत्तम दे सकते है।कार्य का बोझ उन्है थका देता है।बधाई कथा के लिये आद० सीमा सिंह जी ।
शुक्रिया आ० नीता जी।
इस शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी.
शुक्रिया आ०ओम प्रकाश जी।
आ. सीमा जी, विषय को सार्थक करती कथा हुई है हार्दिक बधाई ।
हार्दिक धन्यवाद आ० लक्ष्मण धामी जी।
विषय से पूरी तरह न्याय करती इस लघुकथा का शीर्षक 'आइसिंग ऑन केक' है । बस इतना सा ख्वाब.... यानि जो होना चाहिए वह भी हमारे समाज में बस एक ख्वाब बन कर ही रह गया है । साधारण से कथानक को बाकमाल प्रस्तुतिकरण ने चार चॉंद लगा दिए । बधाई स्वीकारें ।
ह्रदय से आभार सर!आपके अनुमोदन से आत्मविश्वास सातवें माले पर पहुँच गया।
कुछ ज्यादा ही सपना देख लिया | पर इस कथा के माध्यम से नौकरी के दौरान का प्रेशर को बहुत अच्छे से दर्शाया है | हार्दिक बधाई सीमा |
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