आदरणीय साथिओ,
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इस लघुकथा में 2 योद्धा है. एक जो सब कुछ हासिल करने के बावजूद भी पराजित है और दूसरा जो हर प्रकार की पराजय मिलने के बावजूद भी एक ऐसा योद्धा है जो कि अनाम रह गया. यह लघुकथा एक सुंदर दृश्य चित्रण करती है जिसमे बीअर का दौर चल रह है, और एक वास्तव में पराजित व्यक्ति एक ऐसे आदमी का ज़िक्र छेड़ बैठा है जो योद्धा तो है लेकिन पराजित होने कस्न्ताप भोग भोग रहा है. मुझे यह लघुकथा अच्छी लगी (हालाकि और ज्यादा चुस्त हो सकती थी) जिशेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें जानकी वाही जी.
हार्दिक आभार सर जी,सहमत कुछ स्पष्ट और कसावट मांग रही है।मार्गदर्शन हेतु पुनः आभार।
बहुत उम्दा प्रयास, हालांकि शुरू में रचना कुछ उलझन पैदा करती है लेकिन आगे बढकर समझ में आने लगती है.... बरहाल जानकी जी, विषय को परिभाषित करने का अच्छा प्रयास हुआ है... मेरी ओर से बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीया
हार्दिक आभार आ.वीरेंद्र वीर मेहता जी।कुछ नया ट्रीटमेंट जरूर मांग रही है कथा।
हमेशा की तरह अच्छी लघु कथा लिखी हैं प्रिय जानकी जी दिल से मेरी बधाई स्वीकार करें
दिल से शुक्रिया आ.राजेश कुमारी जी।
आदरणीया जानकी वाही जी आदाब,
बेजोड़ और लाजवाब कथा । हार्दिक बधाई
स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आ.मोहम्मद आरिफ़ साहब।
मोहतरमा जानकी वाही जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी,बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आ.समर कबीर साहब।
आद0 जानकी जी सादर नमन। हमेशा की तरह बेहतरीन लघुकथा पढ़ने को मिली आपकी ज़ानिब से। बधाई आपको
हार्दिक आभार आ.सुरेंद्र नाथ सिंह जी
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