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कितने रोगों से बच जाते

जब कागज के ये रुपये
सुन्दर सिक्कों में ढल जाते
तब सचमुच अच्छा होता
कितने रोगों से बच जाते

कम से कम गंदे नोटों को
हमें नहीं छूना पड़ता
जिनमें गुटखा पीक लगा हो
और हिसाब लिखा चुभता

तभी पुराने महाराजे
सुन्दर सिक्के गढ़वाते थे
जो भी हो , गंदे सिक्के

पानी  से तो धुल जाते थे

सिक्कों की प्राचीन प्रथा
सचमुच में कितनी अच्छी थी
स्वस्थ रहे जनता अपनी
यह सुभग भावना सच्ची थी

नोट छापना बहुत जरूरी
उनको ऐसे छपवाएँ
साफ रह सकें , लगें सुहाने
और हमारे मन भाएँ

स्वच्छ रहे भारत अपना
यह सुघट कल्पना अच्छी है
उज्ज्वल और रमणीय बने
इच्छा अपनी तो सच्ची है

निश्चय ही ई लेन - देन में
यह शुचिता तो पूरी है
पर अपना धन रहे सुरक्षित
यह चौकसी जरूरी है

मौलिक एव॔ अप्रकाशित

उषा अवस्थी
5 / 405 , विराम खण्ड , गोमती नगर ,
लखनऊ (उ 0 प्र 0 )
मो0 9452461053
8318246358

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Comment by Usha Awasthi on May 24, 2018 at 8:05pm

शुक्रिया मोहम्मद आरिफ़ जी

Comment by Mohammed Arif on May 22, 2018 at 6:58pm
आलरणीया ऊषा अवस्थी जी आदाब,
बहुत ही साधारण अंदाज़ की कविता । नोटों के बदले सिक्कों की महिमा का बखान करती कविता । काश ! बिम्बों-प्रतीकों का भी प्रयोग देखने को मिलता । बधाई स्वीकार करें ।

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