आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
बहुत अच्छी रचना आदरणीय सिद्दिक़ी जी ,बधाई आपको इस सुंदर लघुकथा के लिए ,सादर
आ बरखा जी सादर आभार , आपका।
आदरणीय मुज़फ़्फ़र इक़बाल जी आदाब,
बहुत ही सशक्त और प्रदत्त विषय पर को पूरी-पूरी तरह न्याय करती कथा । कछ उद्धरण चिन्हों की कमी खल रही है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
जनाब आरिफ साहब बहुत बहुत शुक्रिया ,आपका
अपने बच्चों को लेकर हर माता पिता ऐसा ही सोचते हैं, बहुत भावपूर्ण रचना प्रदत्त विषय पर. बहुत बहुत बधाई आपको आ मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी साहब
आ विनय कुमार जी ,आपका बहुत बहुत आभार।
आ तस्दीक अहमद साहब बहुत बहुत शुक्रिया , आपका।
माँ की ममता को जब आईना दिखाया तब उनकी आँखों पर बंधी स्वार्थ की पट्टी हट गई ।काश!! एेसा होता तो वृद्धाश्रम होते ही नही ।बधाई कथा के लिये आद०मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिदद्की जी ।
आपने बिल्कुल सही कहा , आ नीता जी। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आ० मुजफ्फर इक़बाल सिद्दीक़ी भाई जी, देखकर बताएँ कि अब सम्प्रेषण पहले से बेहतर हुआ कि नहीं?
आज फिर अंजलि आफिस से आते-आते लेट हो गई थी। लिफ़्ट में क़दम रखते ही सासू माँ और बच्चों के चेहरे नज़र के सामने झूम गए।कितनी बेक़रारी से इन्तिज़ार कर रहे होंगे? ऑफिस से काम्प्लेक्स तक का सफर इतना दूभर नहीं था जितना ये लिफ्ट का एक मिनट का सफर। फ्लेट का दरवाज़ा भी जैसे उसके इन्तिज़ार में ढलका हुआ था। सहमे - सहमे क़दमों से जैसे ही दाखिल हुई सबकी सवालिया नज़रों का सामना था। बच्चे , अंकुर और सौरवी भी अपने कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्तता के कारण घर के कामों में हाथ नहीं बटा पाते थे। किसी को कोई सवाल-जवाब किये बिना ड्रेस चेंज कर किचन में चली गई।
.
फिर क्या था चेहरे पर वही चिर परिचित मुस्कान के साथ चाय नाश्ता हाज़िर था। बुज़ुर्ग सासू माँ की सेवा और उनका अनुशासन। पति और बच्चों की ज़रूरतें तो हैं ही। ज़िन्दगी इसी तरह एक मशीन बन चुकी थी। घर के काम निपटाते हुए कभी ऑफिस के लिए लेट हो जाना तो कभी ऑफिस के काम निपटाते हुए घर पहुँचते पहुँचते लेट हो जाना। और जब सारे काम निपट जाएँ तो फिर अपने कमरे में पहुँचते ही अनुराग की ख़्वाहिशी नज़रों का सामना..
“अनुराग, मैं तो ज़िन्दगी के तमाम अनसुलझे समीकरणों को हल करते करते थक चुकी हूँ।“
“मैंने तो प्रत्येक समीकरण में उपयुक्त मान रख कर उसे हल करने की सदैव कोशिश की है। लेकिन..”
“तो मैं क्या करूँ?
“अंजलि। अब तुम ही बताओ मैं इस अवस्था में माताजी को कहाँ छोड़ कर आऊँ?”
“मैं छोड़ने की बात नहीं कर रही। मैं तो केवल इतना चाहती हूँ कि माता जी को भी हमारी मजबूरियाँ समझना चाहिए।“
“मैं कितनी बार कह चुका हूँ अंजलि , हम उन्हें समझा नहीं सकते। " हमें ही उनके अनुसार ढलना पड़ेगा।"
“तो फिर अनुराग मुझसे ये सब नहीं होगा।“ अंजलि आज जैसे दो टूक कह देना चाहती थी।
माँ- बाप को ऊँची आवाज़ में बात करते देख बच्चे भी कमरे में आ चुके थे। बेटे को पास खड़ा देख अनुराग ने हिदायती लहजे में कहा -
“बेटे अंकुर, अगर तुम अपनी ज़िन्दगी में सुख शांति चाहते हो तो हमें कभी अपने साथ मत रखना।"
“अनुराग, आप ये कैसी शिक्षा दे रहे हैं अपने बेटे को?"
“सही तो है अंजलि, मेरी माँ के कारण यदि हमारी ज़िन्दगी नर्क बन चुकी है। तो फिर हमें भी अपने बच्चों की ज़िन्दगी की सुख शांति छीनने का हक़ नहीं है।“
ये सब सुनकर अंजलि की आँखों से अविरल आँसू बहने लगे। क्योंकि उसने तो अपने बच्चों के बिना जीने की कल्पना तक नहीं की थी।
दिल की गहराइयों से बहुत बहुत शुक्रिया , भाई साहब। आपने तो लघुकथा को सम्प्रेषित कर बिल्कुल नया अंदाज़ दे दिया।
आपने सदैव मेरी रचनाओं को सजाया है , संवारा है और मुझ नाचीज़ को लिखने का हौसला दिया है। आपका बेहद शुक्रगुज़ार हूँ। आगे भी आप से उम्मीदें वाबस्ता हैं , आप इसी तरह मेरा मार्गदर्शन करते रहेगे। एक बार फिर सादर ...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |