आदरणीय साथिओ,
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आयोजन के प्रारंभ में एक बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई भाई अजय गुप्ता जी... आपसी संबंधो में शक और अविश्वास आजकल आम होता जा रहा है. इसी संदर्भ में रची आप की रचना सटीक कथ्य सामने रखती है. अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
बहुत बहुत आभार वीरेंदर वीर जी.
आयोजन का श्री गणेश करने के लिए हार्दिक बधाई। सामसमयिक कथानक पर आपका यह प्रयास अच्छा है जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई।
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तपस्या ने अरुण की ओर देखा. उस की आँखें भर आई. याद आ गया पिछले डेढ़ साल का सारा घटनाक्रम/
इसके माने तपस्या पिछले डेढ़ वर्ष से प्रताड़ित की जा रही थी। वह सहती गयी...क्यों? उसने तब आवाज़ क्यों नही उठाई?
डी ऍन ऐ टेस्ट के बाद ही डाइवोर्स देने का विचार एकदम कैसे बन गया?
सादर।
शायद अविश्वास की पराकाष्ठा के पश्चात ,क्योकि स्त्री आसानी से अपना घर नही छोड़ती।आ. कल्पना जी यह मेरा आकलन हैं।
जी. यही परिकल्पना थी. कृपया अग्रिम विचार भी पढ़ें. सादर
सकारात्मक टिपण्णी के लिए आभार कल्पना जी.
वह सहती गयी...क्यों?///
कोई भी पत्नी अपने वैवाहिक सम्बन्ध को एकाएक समाप्त नहीं कर सकती वो भी एक 6 साल के बच्चे के साथ. क्योंकि आर्थिक रूप से निर्भर पत्नी भी पति से भावनात्मक रूप से गहनता से जुडी होती है. डेढ़ साल का समय उनके बीच का वो समय है जो तपस्या ने अपने पति को समझाने में दिया.
डी ऍन ऐ टेस्ट के बाद ही डाइवोर्स देने का विचार एकदम कैसे बन गया?//
शायद ये विचार एकदम नहीं बना. तपस्या को पता था नतीजा क्या आयेगा. किन्तु वह आनंद का रिएक्शन देखना चाहती थी. टेस्ट के रिजल्ट के बाद आनंद ने एक बार भी अपनी गलती नहीं मानी. और न माफ़ी ही मांगी. और तो और वो इस हद तक शक कर रहा है कि उसे पत्नी की चरित्रहीनता का पक्का यकीन है. और वो उसे बेइज्जत करने के उद्देश्य से साथ में लैब के कर गया है. वरना इस टेस्ट में पत्नी की क्या भूमिका. आनंद का कहना कि //////तुमने मेरा विश्वास फिर पा लिया है.////// किसी भी सम्भावना को समाप्त करने के लिए काफी है.
आशा है मैं आपकी जिज्ञासा का निवारण कर पाया हूँ
पुनः आभार
सहमत हूं।
शुक्रिया उस्मानी भाई
वाह, एक सशक्त और प्रभावशाली कथा के द्वारा गोष्ठी का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई. अंत बढ़िया है और जरुरी भी है, बहुत बहुत बधाई आपको आ अजय गुप्ता जी
शुक्रिया विनय कुमार जी. अति आभार
आयोजन की शुरूआत महिला सम्मान से ,पत्नी के सम्मान को कठघरे में खड़ा करना फिर उससे सब सामान्य मानने की आशा करना बेहद सरल कार्य है।पर पत्नी के रूख ने स्थिति साफ कर दी ।संदेशप्रदकथा के लिये बधाई आद० अजय गुप्ता जी ।
कथा का मर्म आपतक पहुंचा तो लेखन सफल हुआ. आभार नीता जी
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