आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
बढिया कथा , लेकिन कालसर्प दोष यूँ ही नही बता पाता ,उसके लिए जन्मपत्री देखनी पड़ती हैं।हार्दिक बधाई आपको
विनम्र आभार आदरणीया अर्चना जी।सहमत। परन्तु यह उन लोगों के साथ ब्रह्मवाक्य का काम करता है जो अपने तर्क विज्ञान और विवेक को ताक पर रख कर केवल अंधानुकरण के दास होते हैं। यदि वे दंपत्ति उस आडम्बरी के शब्दों पर विवेकपूर्ण विचार करते तो जान सकते थे कि उसके तथाकथित मन्त्र व्यर्थ हैं, इसप्रकार के कोई देवता मान्य नहीं हैं और न ही इस नाम का कोई पर्वत है, त्रिकूट कालसर्प दोष भी भ्रामक है। पर जब संतान पर ग्रहों द्वारा विपत्ति की बात सामने आती है तो महिलायें सब कुछ न्योछावर करने को तैयार होते देखी गयी हैं , इस प्रकार की घटनाएं प्रायः होती रहती है। सादर।
कालसर्प दोष का किसी प्रामाणिक ग्रंथ में उल्लेख नहीं है अर्चना त्रिपाठी जी। यह ज्योतषियों द्वारा बनाया गया एक भय मात्र है।
अंधविश्वासों और अवशोषण का सत्य प्रस्तुत करती बहुत बढ़िया लघुकथा । आ0 टी आर शुक्ला जी।
विनम्र आभार आदरणीय कनक जी।
एक ज़ोरदार तंज़ तो है ही लघुकथा में रोचकता शुरू से अंत तक बानी रहती है। अन्धविश्वास की जड़े बड़े लोगों में बहुत मजबूत होने का कारण ,भविष्य से डर भी है। सबको लगता है जैसा आजकल चल रहा है सब कुछ वैसा ही चलता रहे। बहुत बहुत बधाई आपको।
विनम्र आभार आदरणीय मुजफ्फर इकबाल जी।
सुंदर दृश्य को आँखों के सामने लाती बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरनीय जी .
बहुत ही उम्दा लघुकथा है, संदेश भी उत्तम उभर कर आ रहा है। बहुत बहुत बधाई डॉ टी आर सुकुल जी।
आदरणीय टी. आर. शुकुल जी, बहुत ही बढ़िया कटाक्ष । मेहनत करने वालों का हक़ मारना और अन्धविश्वास पर पैसे लुटाना - सटीक चित्रण करती बढ़िया लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
रचना विषयांतर्गत अपने मकासिद में क़ामयाब होती है। सामाजिक सरोकार की बेहतरीन रचना। हार्दिक बधाइयां आदरणीय डॉ. त्रैलोक्य रंजन शुक्ल साहिब।
आस्था-
जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए वह घर की तरफ जा रही थी और अपने आप को कोस भी रही थी. घर से निकलते समय उसे याद ही नहीं रहा कि आज सोमवार है और रास्ते पर इतने कांवरिया मिल जाएंगे. जिधर देखती, उधर ही कंधे पर काँवर लटकाये कहीं अकेले तो कहीं झुण्ड में लोग चले जा रहे थे. कुछ लोग तो बाकायदा डी जे की धुन पर नाचते गाते हुए भी चले जा रहे थे. बस एक ही चीज सब जगह कॉमन थी, वह थी सिर्फ लड़के या पुरुष ही थे इस यात्रा में.
पिछले दस मिनट में उसे कई जगह फब्ती सुननी पड़ी थी, कहीं कहीं तो इन लोगों ने उसे धक्का देने और रगड़ने का प्रयास भी किया था. एकाध जगह उसने विरोध करने की कोशिश की तो बाकी कांवरिये भी जुटने लगे. फिर उसे लगा कि शायद स्थिति बदतर ही हो जायेगी तो आगे बढ़ गयी. इतने में उसकी नजर सड़क के किनारे खड़ी एक गाय पर पड़ी जिसको गुजरने वाला हर कांवरिया बड़े प्यार से सहलाता और कुछ तो उसे देखकर "गऊ माता की जय" की जैकारा भी लगा रहे थे.
उसने एक नजर गाय पर डाली और फिर उसको प्यार से सहलाते कांवरियों पर. उसको गाय की किस्मत पर रश्क़ होने लगा और वह भाग कर अपने घर वाली गली में घुस गयी.
मौलिक एवम अप्रकाशित
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |