आदरणीय साथिओ,
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बेहतरीन लघुकथा आदरणीय योगराज सर जी , आपकी हर लघुकथा बहुत बढ़िया होती है ,ये भी विषय को पूर्ण रूप से परिभाषित कर रही है ।बहुत बधाई आपको ,सादर
बहुत बहुत शुक्रिया बरखा शुक्ला जी.
लाजवाब..... संवाद शैली में एक बेहतरीन रचना, कथित जेहाद, आपसी नफरत, और दहशत की राजनीति। एक ही लघुकथा में बहुत उम्दा ढंग से वर्णन किया आपने आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, लघुकथा का अंत //..... तो कम-से-कम इतनी तसल्ली तो रहेगी कि अपने वतन में जाकर मरे हैं।"// एक ही पंक्ति आस्था के सारे अर्थों को को साकार कर गयी. तहे दिल से हार्दिक बधाई आदरणीय भाई जी....
रचना आपको पसंद आई मेरा श्रम सार्थक हुआ, दिल की गहराईओं से आपका शुक्रिया भाई वीर मेहता जी.
आदरणीय योगराज जी, "तो कम-से-कम इतनी तसल्ली तो रहेगी कि अपने वतन में जाकर मरे हैं" बहुत ही शानदार । हार्दिक बधाई।
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हार्दिक आभार आ० नीलम उपाध्याय जी.
देश के नौजवानो को संदेश देती रचना।देश की सरहदों पर रक्षा कर रहे नौजवानों की वैमन्सयता का सजीव चित्रण,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय योगराज सरजी।
हार्दिक आभार बरखा शुक्ला जी.
दिल से शुक्रिया आ० बबिता गुप्ता जी.
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,किस हुस्न-ओ-ख़ूबी से आपने इस लघुकथा का ताना-बाना बुना है, वाह बहुत ख़ूब, कथानक, संवाद हर एतिबार से एक शानदार और सशक्त लघुकथा,प्रदत्त विषय को पूरी तरह अपने अंदर समेटे हुए,हालाँकि 'जिहाद'शब्द पर यहाँ बहुत कुछ साझा करना चाहता था,मगर अब इसका समय नहीं,फिर कभी देखेंगे,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब, आपकी प्रशंसा किसी पुरस्कार से कम नहीं है. जिहाद शब्द मैंने बहुत सोच समझ कर बिना किसी पूर्वधारणा के इस्तेमाल किया है, आश्वस्त रहें.
जी, मैं तो पहले से आश्वस्त हूँ,ये आपने कैसे जान लिया कि मुझे इसमें कुछ तरद्दुद है ?
मेरे कहने का आशय ये है कि 'जिहाद' शब्द के प्रति अक्सर लोग शंका का शिकार होते हैं,और ये स्वाभाविक भी है कि इसका स्पष्टीकरण ही बहुत कम बताया जाता रहा है,मैं इसे आम लोगों के लिए खोलना चाहता था,जिसका मुझे समय नहीं मिल सका, कुछ पारिवारिक उलझनें थीं, फिर एक लोकलआयोजन में जाना भी स्थगित करना पड़ा,ख़ैर फिर कभी सही ।
लघुकथा पर पुनः बधाई,और हाँ एक बात कहने से रह गई थी कि कुछ पंक्तियों में टंकण त्रुटियाँ देख लें ।
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