For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बगल में आ बैठे मौलाना को देखकर उसका मन तल्ख़ हो गया. वैसे उन्होंने कुछ किया नहीं था, बस सर पर एक जालीदार टोपी लगा रखी थी. और मूंछ नहीं रख के एक लम्बी सफ़ेद दाढ़ी रखी हुई थी. उसने अपने आप को उस भीड़ में भी यथासंभव उनसे दूर रखने की कोशिश की.
जैसे ही उसका स्टॉप आया, वह मौलाना पर एक वक्र दृष्टि डाल कर उतर गया. "जाहिलपना तो इनके रग रग में भरा रहता है, जहाँ देखो वहीँ यह टोपी और दाढ़ी", वापस जाते समय उसके दिमाग में यही चल रहा था. अपने मोहल्ले के पास पहुंचा तो मंदिर में पूजा हो रही थी. वह जूते उतारकर अंदर घुस गया, पूरी श्रद्धा से उसने प्रभु के सामने शीश नवाया और बगल में बैठे पुजारी को भी प्रणाम किया. भगवा वस्त्र पहने पुजारी के माथे पर चंदन का टीका लगा था और शुभ्र धवल लम्बी दाढ़ी और मूंछ से उनका चेहरा उसे तेजमय लग रहा था. चलते समय पुजारी से प्रसाद लेकर उसने माथे पर लगाया और घर की तरफ निकल गया.


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 535

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 7, 2018 at 8:22pm

शुक्रिया जनाब विनय कुमार साहिब। दरअसल मैनें केवल जानकारी सांझा की थी, बस !

Comment by विनय कुमार on September 7, 2018 at 4:07pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on September 7, 2018 at 10:18am

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:21pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी, सही कह रहे हैं, इनको बदलना बहुत कठिन है. शुक्रिया

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:20pm

बहुत बहुत आभार आ मोहम्मद आरिफ साहब इस विस्तृत टिपण्णी के लिए. दरअसल समाज में लोगों के दिमाग में इस तरह से चीजें बैठा दी जाती हैं कि उसे दूसरे मज़हब की हर चीज बुरी लगने लगती है. और यह हर कौम के साथ लागू होता है, ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें, शुक्रिया

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:17pm

बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, इस विस्तृत टिपण्णी और जानकारी के लिए शुक्रिया.यहाँ बात इसकी नहीं है कि मूंछ क्यों नहीं रखते, बात इसकी है कि अपने मज़हब की चीज सही और दूसरे मज़हब की चीज गलत लगती है 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 6, 2018 at 11:14am

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। बेहतरीन लघुकथा।कुछ लोग जन्म जात घृणा लेकर पैदा होते हैं। वे कभी नहीं बदलते।

Comment by Mohammed Arif on September 6, 2018 at 12:06am

आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,

                         बहुत ही ज्वलंत और सामयिक विषय पर आपने बड़ी ईमानदारी और साहस के साथ क़लम चलाई जिसके लिए आपकी बेबाकी की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । आज हमारे देश में यही सबकुछ चल रहा है । एक वर्ग विशेष के प्रति इतनी घृणा कभी नहीं देखी गई जितनी नई सत्ता के उदय के साथ इन चार सालों में देखने को मिली । आख़िर क्या कारण है कि एक वर्ग इतना हिंसा और मॉब लिंचिंग का शिकार हो गया । कुछ कट्टरवादी संगठन गाजर घास और कुकुरमुत्तों की तरह वजूद में आ गए हैं जिनका पेशा हिंसा हो गया है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2018 at 6:10pm

एक अहम विषय व.कथानक पर अहम कथ्य सम्प्रेषित करती उम्दा लघुकथा हेतु हार्दिक बधाइयां आदरणीय विनय कुमार साहिब। दाढ़ी के साथ क्लीन मूछें रखने के पीछे कई स्वास्थ्य संबंधी व सुविधा संबंधी व अन्य कारण हैं। जैसे नाक व मुंह में बालों के प्रवेश अवरोध व बज़ू अदा करने में सुविधा आदि। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service