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thanks sanjay jee 'HUNKAAR' bharne ka prayaas ho raha hai dekhiye kaamyabee kab miltee hai !!
वॉय होय , क्या बात है अरुण भाई, बिलकुल अवि ख्यालातो से सजी ग़ज़ल है |
हर तरफ झूठ के बरगद की काली छाया है ,
अब हथेली पे सच की पौध उगाई जाए
मेरे समझ से इस शे'र को हासिले गजल कहा जा सकता है | दाद कुबूल करे |
ये हुई न बात मैं भी बागी भाई लिखते समय इसी शेर पर फ़िदा हो गया था लगा कोई बात बनी है और अब आपने इस और इंगित मेरा मन प्रसन्न कर दिया है बहुत बहुत आभार || आपका स्नेह मेरा संबल है | जय ओ बी ओ !!
सर्व प्रथम प्रणाम आचार्य जी !! लिखते समय मैंने भी 'स्याह' और 'काली' पर विचार किया था परन्तु 'झूठ' और 'बरगद' जैसे हिंदी शब्दों के कारण , और बाद में 'छाया' (हिंदी शब्द) के कारन काली रखा | पर आपकी राय श्रेष्ठ है और सर आँखों पर !! आभारी हूँ आपका आशीष मेरे साथ रहे यही कामना है !!
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