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कह दो भाई खुल के तो हमारा भी भला हो
सुखन की रवायत अब हमको भी बताई जाए..
सादर...
सौरभ जी, बहुत खूब !
''घर-आँगन को रखती पावन बेटी है संस्कार
हर आँगन इस तुलसी की पौध बचाई जाए.''
चौखट खिड़की घर आंगन हैं जीवन के आधार,
शर्त मगर है म्ध्य बनी दीवार गिराई जाये।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
शुक्रिया.. भाई संजयजी.
धन्यवाद भाइजी.
बह्र को बहरियाया गया है.. सो उन्हें भितरिया रहा हूँ.
(शांतता... काज चालू आहे.)
/चौखट-खिड़की घर-आँगन हैं जीवन के आधार
शर्त मग़र है मध्य बनी दीवार गिराई जाए./
वाह! जबरदस्त कहन है. दाद कबूल करें.
आदरणीय भाई साहब, आपकी दरियादिली पर बस इतना ही कह सकता हूँ... "... आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे.. "
हर क्रिया और कार्य के कारण हुआ करते हैं. इस क्या को आप सभी ने देखा. इसके क्यों को भी जान जाएंगे. फिर इसका कैसे भी सधा दीखेगा, इतना आश्वस्त कर सकता हूँ. फिल वक़्त की बेतरतीबी पर अलबत्ता कुछ नहीं कहूँगा.
आपकी हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहेदिल से शुक़्रगुज़ार हूँ.
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