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1212  1122 1212 22/112

क़ज़ा का करके मेरी इंतिज़ाम उतरी है ।
अभी अभी जो मेरे घर मे शाम उतरी है ।।

तमाम  उम्र  का ले तामझाम उतरी है ।
ये जीस्त मौत को करने  सलाम उतरी है ।।

अदाएं देख के उसकी ये लग रहा है मुझे ।
कि लेने  हूर  कोई  इंतिकाम  उतरी है ।।

वो शाम होते ही जायेगा मैकदे में फिर ।
शराब  उसको  बनाकर गुलाम उतरी है ।।

मरेंगे आज  यहां  बेगुनाह  फिर देखो ।
सड़क पे ले के सियासत अवाम उतरी है ।।

सियाह शब में उजालों की पैठ फिर होगी ।
किरन ये चाँद  का लेकर पयाम उतरी है ।।

बिखेर दी है फिजाओं में फिर नई ख़ुश्बू ।
हवा  जो आज लिए अहतराम उतरी है।।

      
ख़बर  मुझको  है तेरे इश्क़ की बलन्दी से ।
जवानी  हो  के  बहुत बेलगााम उतरी है ।।

सुना रहा हूँ ज़माने को आज फिर से मैं ।
जो याद जेहन में  लेकर  कलाम उतरी है ।।

वो बेवफा से मुहब्बत न छोड़ पायेगा ।
कि जिसके वास्ते इज्ज़त तमाम उतरी है ।।

जो उड़ रही थी तस्व्वुर में एक मुद्दत से ।
जमीं पे नींद वो करने हराम उतरी है ।।

        मौलिक अप्रकाशित
         डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 17, 2019 at 12:23pm

आ0 आमोद श्रीवास्तव जी हार्दिक आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 17, 2019 at 12:22pm

आ0 कबीर सर सादर नमन 

ख़बर है मुझको तेरे इश्क़ की बुलन्दी से 

मिसरे को ऐसा कर रहा हूँ 

Comment by Samar kabeer on February 15, 2019 at 4:36pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

'ख़बर  मुझको  है तेरे इश्क़ की बलन्दी से'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on February 14, 2019 at 10:56am

आ  रचना के लिए बधाई ...

ये...सड़क पे लेके सियासत अवाम उतरी है " बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

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