अब शहादत को न जाया कीजिये ।
आइना उनको दिखाया कीजिये।।
मुल्क में है इन्तकामी हौसला ।
हौसलों को मत दबाया कीजिये ।।
आग उगलेगी सुख़नवर की कलम ।
अब न कोई सच छुपाया कीजिये ।।
ख़ाब जो देखें हमारे कत्ल की ।
हर सितम उनपे ही ढाया कीजिये ।।
उनके हमले से फ़जीहत हो गयी।
दिल यहाँ अपना जलाया कीजिये ।।
तफ़सरा कीजै नये हालात पर ।
आप अपना घर बचाया कीजिये ।।
ये ताल्लुक अब तलक जिंदा था क्यूँ ।
प्यार इतना मत दिखाया कीजिये ।।
खर्च क्यों हो देश के गद्दार पर ।
बोझ इतना मत उठाया कीजिये ।।
दर्द क्या है ये उन्हें भी हो पता ।
कुछ निशाना भी लगाया कीजिये ।।
क्यूँ यकीं करते रहे उन पर मियाँ ।
इस तरह धोखा न खाया कीजिये ।।
देखिए अंजाम अपनी फौज का ।
अब कबूतर मत उड़ाया कीजिये ।।
मौलिक अ प्रकाशित
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
Comment
आ0 बृजेश कुमार ब्रज साहब हार्दिक आभार ।
आ0 कबीर सर तहेदिल से बहुत आभार ।
वाह खूब आदरणीय त्रिपाठी जी...
जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'अब शहादत को न जाया कीजिये'
इस मिसरे में क़ाफ़िया ग़लत है,सहीह शब्द है "ज़ाए" ।
'ख़ाब जो देखें हमारे कत्ल की'
इस मिसरे में 'की' को "का" कर लें,"क़त्ल"पुल्लिंग है ।
'तफ़सरा कीजै नये हालात पर'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "तब्सिरा"मिसरा यूँ कर लें:-
'तब्सिरा करके नये हालात पर'
'ये ताल्लुक अब तलक जिंदा था क्यूँ'
इस मिसरे में 'ताल्लुक' को "तअल्लुक़" कर लें ।
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