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खूब सूरत गुनाह कर बैठे ।
हुस्न पर हम निगाह कर बैठे ।।
आप गुजरे गली से जब उनके ।
सारी बस्ती तबाह कर बैठे ।।
कुछ असर हो गया जमाने का ।
ज़ुल्फ़ वो भी सियाह कर बैठे ।।
देख कर जो गए थे गुलशन को ।
आज फूलों की चाह कर बैठे ।।
जख्म दिल का अभी हरा है क्या ।
आप फिर क्यों कराह कर बैठे ।।
किस तरह से जलाएं मेरा घर ।
लोग मुझसे सलाह कर बैठे ।।
लोग नफरत की इस सियासत में ।
आपको बादशाह कर बैठे ।।
दुश्मनी जब चले निभाने हम ।
वो हमें खैरख्वाह कर बैठे ।।
उस जमीं का उदास मंजर था ।
हम जिसे ईदगाह कर बैठे ।।
वो तो सरकार की सियासत थी ।
आप क्यूँ आत्मदाह कर बैठे ।।
अब तस्सल्ली उन्हें मुबारक़ हो ।
मुल्क जो कत्लगाह कर बैठे ।।
उन शहीदों को है सलाम मेरा ।
मौत से जो निक़ाह कर बैठे ।।
सिर्फ पहुँचे वही खुदा तक हैं ।
इश्क़ जो बेपनाह कर बैठे ।।
डॉ - नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आपने छोटी 'ह'(जिसे उर्दू में 'ह' ख़फ़ी कहते हैं) लिए हैं ,और 'सलाह' और 'निकाह' शब्द के अंत में बड़ी 'ह' लिया जाता है,इसलिए उर्दू में इसकी इजाज़त नहीं है ।
आ0 कबीर सर क्षमा कीजियेगा आपके नाम के साथ आदर सूचक शब्द टाइप करने में छूट गया है ।
आ0 कबीर सादर नमन के साथ हार्दिक आभार । कृपया सलाह और निक़ाह उर्दू के हिसाब से कौन सा तकनीकी कारण इस पर भी प्रकाश डालने का कष्ट करें । खुद की जानकारी के लिए आवश्यक समझता हूँ।
सादर
जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'आप गुजरे गली से जब उनके'
इस मिसरे में 'उनके' की जगह "उनकी" कर लें ।
'लोग मुझसे सलाह कर बैठे'
इस मिसरे का क़ाफ़िया उर्दू के हिसाब से ग़लत है,लेकिन देवनागरी में शायद चल जाएगा ।
'उन शहीदों को है सलाम मेरा ।
मौत से जो निक़ाह कर बैठे ।।'
इस शैर के ऊला में तनाफ़ुर देखें,और सानी में 'निकाह'क़ाफ़िया उर्दू के हिसाब से ग़लत है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-
'है सलाम उन शहीदों को मेरा'
आ0 लक्ष्मण धामी साहब हार्दिक आभार ।
आ. भाई नवीन जी, उम्दा गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।
आ0 हरिओम श्रीवास्तव साहब हार्दिक आभार
आ0 आसिफ़ जैदी साहब तहेदिल से शुक्रिया ।
आदरणीय क्या कहने अचछे अशआर के बधाई स्वीकार करें सादर
वाह,वाहह,बेहतरीन ग़ज़ल। खूबसूरत गुनाह..
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