Tags:
Replies are closed for this discussion.
आपका आदेश सिर-आँखों पर ........
सुंदर भावों पर लिखी ये आपकी गजल बहुत अच्छी लगी, सलिल जी. बधाई....
''दान कन्या का किया, क्यों तुम्हें वरदान मिले?
रस्म वर-दान की क्यों, अब न चलायी जाए??
ज़िंदगी जीना है जिनको, वही साथी चुन लें.
माँग दे मांग न बेटी की भरायी जाए..''
नहीं पकवान की ख्वाहिश, न दावतों की ही.
दाल-रोटी ही 'सलिल' चैन से खायी जाए..''
वाह वाह आचार्य जी , एक और खुबसूरत ग़ज़ल आपने प्रस्तुत किया है | सिया को भेज सियासत ने दिया जब जंगल, रस्म वर-दान की क्यों, अब न चलायी जाए?? एकदम नया ख्याल है |
मकते में एक तखल्लुस देने कि परंपरा को चैलेन्ज करते हुए कई नाम उल्लेखित करने हेतु विशेष आभार |
पाँव पनघट को न भूलें, न चरण चौपालें.
खुशनुमा रिश्तों की फिर फसल उगायी जाए..
बहुत ही बढ़िया आचार्य जी...बधाई स्वीकार हो...
//कबसे रूठी हुई किस्मत है मनायी जाए.
आस-फूलों से 'सलिल' सांस सजायी जाए..//
शानदार मतला! साँस सजाने के लिए आस के फूलों का प्रयोग बहुत जानदार लगा |
//तल्ख़ तस्वीर हकीकत की दिखायी जाए.
आओ मिल-जुल के कोई बात बनायी जाए..//
हकीकत की तस्वीर तल्ख़ तो अवश्य होती है परन्तु बात तो उसी के धरातल पर ही बन पाती है .....
//सिया को भेज सियासत ने दिया जब जंगल.
तभी उजड़ी थी अवध बस्ती बसायी जाए..//
//गिरें जनमत को जिबह करती हुई सरकारें.
बेहिचक जनता की आवाज़ उठायी जाए..//
बहुत खूब ......दिल की बात कह दी गुरुवर ........:))
//पाँव पनघट को न भूलें, न चरण चौपालें.
खुशनुमा रिश्तों की फिर फसल उगायी जाए..//
सत्य कहा आपनें ! इन रिश्तों को हमें पुनर्जीवित करना ही होगा !
//दान कन्या का किया, क्यों तुम्हें वरदान मिले?
रस्म वर-दान की क्यों, अब न चलायी जाए??//
सच कहा आपनें ! सिर्फ लीक पर चलते जाना ही इंसानियत नहीं !!!...वर-दान की इस नयी रस्म का स्वागत है ........:))
//ज़िंदगी जीना है जिनको, वही साथी चुन लें.
माँग दे मांग न बेटी की भरायी जाए..//
//नहीं पकवान की ख्वाहिश, न दावतों की ही.
दाल-रोटी ही 'सलिल' चैन से खायी जाए..//
बहुत खूब आचार्य जी ! इस अशआर में ही सम्पूर्ण सुखी-जीवन का सार छिपा है .........
//ईश अम्बर का न बागी हो, प्रभाकर चेते.झोपड़ी पर न 'सलिल' बिजली गिरायी जाए..//
बहुत गहरा भाव ! काश हम इन के लिए भी कुछ कर सकें!
इस सार्थक व सटीक गजल के लिए हृदय से कोटि-कोटि बधाइयाँ स्वीकार करें !
Aacharya ji...aapko shat shat naman...bahut hi sunder rachna...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |